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जिस गेट को खोलना मना था: कोलाराडो में एक वेंडिगो से मेरा सामना

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मेरा नाम सिसको है। जब मेरे साथ ये घटना घटी तो मैं बस ग्यारह साल का था। मैं अपनी फैमिली के साथ कोलाराडो के पहाड़ों के पास रहता था। वो हमारा पुश्तैनी घर था। वो पूरा एरिया मेरे ही घर में आता था। और दूसरों का घर मेरे घर से काफी दूर था। मेरे घर के पीछे बड़े-बड़े पेड़ और पहाड़ थे जो जंगलों से ढके हुए थे, जो कि मुझको बहुत ही ज्यादा पसंद थे। हमारी फैमिली शहर से थोड़ा अलग रहती थी। घर में मेरी मम्मी, पापा और मैं ही रहते थे। पापा सुबह ऑफिस चले जाते थे और मैं और मम्मी पूरा दिन घर में अकेले रहते थे। उस वक्त मेरे स्कूल की छुट्टियां भी चल रही थीं। मेरे पास दो Saint Bernard कुत्ते भी थे, जिसमें से एक का नाम Joe था जो कि एक male dog था और दूसरे का नाम Cliff जो कि एक female dog थी। मैं पूरा दिन उन दोनों के ही साथ खेला करता था। वो दोनों मेरी बात बहुत अच्छे से मानते थे। Dad ने उनको मेरी safety के लिए रखा हुआ था क्योंकि अक्सर मैं खेलते हुए कभी-कभी जंगलों की तरफ चला जाता था। वहां पर जंगली जानवर बहुत थे, हालांकि मैंने कभी भी उनको देखा नहीं था। लेकिन पापा ने मुझको वहां जाने से मना किया हुआ था, इसलिए मैं उस ...

कॉलेज फेयरवेल के अगले दिन पता चला, मेरा दोस्त तो मर चुका था... तो मेरे साथ कौन था रातभर? | डरावनी कहानी

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सन उन्नीस सौ नब्बे पहाड़ियों के बीच में एक college था उसमें hostel भी था आज बहुत सारे लोग इस. कॉलेज से पढ़ाई पूरी कर गए. आपस में एक-दूसरे को अलविदा कह रहे थे. उन्हीं में से दो दोस्त हैं. शिवा और आदित्य. उन दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी. साथ में एक दिन ही college में आए थे और आज दोनों अलविदा हो रहे थे. Aditya बहुत उदास था मानो वो घर जाना ही नहीं चाहता था और वो कहाँ रहता. Shiva को ये मालूम भी नहीं था दोनों ने गले मिलकर एक दूसरे को अलविदा किया Shiva ने अपने घर का पता Aditya को दिया और कहा आना मेरे घर छुट्टियों में. हम खूब मजे करेंगे मैं तुम्हें गाँव घुमाऊँगा और बहुत मस्ती करेंगे लेकिन Aditya वो उदास ही रहा तभी Shiva बोला चल उदास मत हो हम. friend है यार चल तू अपना पता दे दे मैं कभी आ जाऊँगा तुझसे मिलने Aditya बिना कुछ कहे वहाँ से चला जाता है सिवा सोचता है कि उसे कोई लेने भी नहीं आया. इस वजह से वो उदास है कुछ घंटे बाद Shiva कोले ने Shiva के चाचा जी आ जाते है गाड़ी लिए Shiva के चाचा जी Shiva को गाड़ी में बैठने को कहते है. अब तक शाम हो चुकी थी चाचा के साथ शिवान निकल लेता है गाड़ी में बैठ...

कोरोना काल का अनसुलझा रहस्य: जब मरा हुआ आदमी आया नौकरी पर!

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ये वो समय था जब कोरोना वायरस का संक्रमण चारों तरफ फैला हुआ था. हर आदमी इस संक्रमण से बचने की कोशिश कर रहा था. लेकिन कोरोना वायरस किसी ना किसी को अपनी चपेट में ले ही लेता था. एक फैक्ट्री में रमेश नाम के एक व्यक्ति काम करते थे. वो अपनी ड्यूटी के प्रति बहुत ही समर्पित. है फैक्ट्री के कर्मचारी रमेश का व्यवहार फैक्ट्री के मालिक को ही नहीं बल्कि फैक्ट्री में काम करने वाले हर एक कर्मचारी को पसंद आता था वो हंसमुख स्वभाव वाला था. लॉकडाउन घोषित हुआ तो फैक्ट्रियां बंद हो गई. सारा कामकाज ठप हो गया. दो-तीन महीने में तो फैक्ट्रियों ने अपने कर्मचारियों को घर बैठे वेतन दिया. लेकिन बिना काम के फैक्ट्री में ऐसा कितने दिन चल पाता इसलिए आप फैक्ट्रियों ने अपने कर्मचारियों को वेतन देना भी बंद कर दिया। फिर जहाँ रमेश काम करता था. उस factory में भी दो तीन महीने बाद वेतन देना बंद कर दिया। Ramesh इस कारण lockdown के दौरान फैक्ट्री द्वारा वेतन ना दिए जाने के कारण बहुत ही मायूस रहने लगा. वो पारिवारिक जिम्मेदारियों के बढ़ते तनाव से जूझने लगा था। लेकिन कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा था। और लॉकडाउन और भी बढ़त...

मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर जिन्होंने मेरी मदद की वो लोग जिंदा ही नहीं थे

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आज उस बात को सात साल बीत गए हैं लेकिन फिर भी वो रात आज भी मुझे इस तरह से याद है जैसे कल की ही बात हो. मेरा नाम Rahul है उम्र चौंतीस साल काम है photographer और काम के सिलसिले में मुझे यहाँ वहाँ घूमना पड़ता है क्या पता कहाँ अच्छी तस्वीर मिल जाए. तो ये बात तब की है जब मुझे नया नया चस्का लगा photography का वैसे मैं engineering कर रहा था पर मेरा मन किसी और काम में था घर पर काफी ज्यादा डाँट फटकार. थे शौक को अपना career बनाने का पर वो कहते है ना ज़िद है बस और हम बन गए जो हम बनना चाहते थे ताकि मरते समय ये बात दिमाग में ना. जाए कि जो हम करना चाहते थे वो कर ही नहीं पाए. खैर पर आज जो मैं बताने जा रहा हूँ वो बात मुझे आज भी खाती है. मुझे किसी ने बताया. कि मेरे शहर से करीब दो सौ किलोमीटर दूर एक जंगल है जिसमें मुझे कई खूबसूरत तस्वीरें मिल सकती हैं. और ये खूबसूरत तस्वीरें मुझे रात के समय में मिलेगी. और हम भी अपना झोला झंडा उठाकर निकल पड़े पहले train फिर bus और फिर auto का सफर काफी थका देने वाला था काफी रात में मैं वहाँ पहुँचा. लेने की हिम्मत नहीं थी तो रात को forest department वालों के guest house ...

जंगल में काला जादू का गड्ढा खोदा और एक अनदेखी ताकत पीछे पड़ गई

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उस वक्त कुछ बच्चे खेलते-खेलते उस जगह को खोदने लगते हैं. मैं अपने एक दोस्त के साथ उसी तरफ से जा रहा था. मेरी नजर उन बच्चों पर पड़ी. पास जा के देखा तो उन्होंने दो फीट गहरा गड्ढा कर दिया. गड्ढे में एक polythene के अंदर कुछ सामान बांधा हुआ था। हमें देखते ही वो बच्चे भाग गए। हमने गड्ढे में देखा एक polythene के नीचे मरा हुआ कौवा पड़ा था। उसकी आँख से बहता खून अभी भी ताज़ा था। दोस्त ने कहा ये जंगल में किसने दबा. होगा इसे polythene के अंदर काली चीजें थी जैसे लौंग, काली मिर्च, राई के दाने काली दाल और काला धागा ये देखते ही हम दोनों आगे बढ़ गए क्योंकि ऐसी चीजों में हाथ डालना ठीक नहीं होता। जितना दूर रहो उतना अच्छा है. थोड़ा आगे जा के मैंने उसे रोका यार ये बच्चे यहाँ कैसे आए होंगे? दोस्त ने कहा छोड़ ना यार नहीं भाई एक काम करते हैं उस गड्ढे में वापस से मिट्टी डाल के आ जाते हैं दोस्त के मना करने के बाद भी मैं वहाँ पे चला गया और मेरे पीछे-पीछे. आ गया उसने कहा जो भी करना है थोड़ा जल्दी कर अँधेरा होने वाला है मैं गड्ढे के पास जाके रुक गया और नीचे देखते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी दोस्त आ के कहता...

रात साढ़े बारह बजे के बाद हाईवे का खौफनाक राज: ढाबे वाले ने बताई भूतिया औरत की कहानी

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संदीप को आज घर जाने में देरी हो गई थी क्योंकि आज दिन से ही बारिश हो रही थी. आज संदीप का काम भी अच्छा ही चल रहा था, वह highway पर समोसे बेचा करता है. Sandeep ने अपने ढाबे का सारा काम निपटाकर बर्तन वगैरह साफ किए तो लगभग रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे. Sandeep और उसका दोस्त Rahul दोनों एक साथ partnership में समोसे बेचा करते थे. दोनों का घर भी एक दूसरे के घर के आसपास ही था और highway से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर था. संदीप के पास एक मारुती एट हंड्रेड कार थी. दोनों उसी कार में ढाबे पर सुबह दस बजे तक आ जाते हैं और अक्सर रात को आठ या साढ़े आठ बजे तक घर के लिए निकल जाते थे. पर आज, बारिश की वजह से इन दोनों को देर हो गई थी. संदीप अपनी गाड़ी के पास गया और गाड़ी स्टार्ट करने लगा. लेकिन गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी. सुबह से बारिश थी और अभी ठंड भी काफी थी, इसी वजह से भी गाड़ी शायद start नहीं हो रही थी. Sandeep ने कोशिश तो बहुत की लेकिन गाड़ी start होने का नाम नहीं ले रही थी. तभी Sandeep ने Rahul को धक्का मारने के लिए कहा. Sandeep के बोलने के बाद Rahul गाड़ी से नीचे उतरा और धक्का लगाना शुरू...

साहिल की रात की भूख और उस कबाब स्टॉल का गहरा राज

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साहिल आधी रात को अंजान रास्तों पर अपनी गाड़ी भगाए जा रहा था। उसे इस शहर में शिफ्ट हुए सिर्फ पाँच दिन ही हुए थे। कंपनी के नए ब्रांच में काम का भारी वर्क लोड होने की वजह से उसे पिछले दिनों में घर से ऑफिस और ऑफिस से घर के रास्ते के अलावा कहीं और भटकने का मौका नसीब नहीं हो सका था। यूँ तो आज का दिन भी बाकियों से कुछ अलग नहीं था। लेकिन आज भूख के नाम पर उसके पास दूसरी सड़कों को छान मारने का वाजिब कारण था। लिहाजा, जिस वक्त तक आधे से ज्यादा शहर काम से फारिक होकर बिस्तर में पड़े-पड़े फोन की स्क्रीन नापता है, वो शहर की सड़कें नाप रहा था पिछले पौने घंटे से। मनचाही जगह न मिलने की झुंझलाहट उसके चेहरे पर दिखाई देने लगी थी। थक हार कर उसने घर जाने वाले दूसरे रास्ते पर गाड़ी मोड़ ली। कि तभी एक जानी पहचानी खुशबू ने उसे ब्रेक पर दबाव बढ़ाने पर मजबूर कर दिया। खुशबू का केंद्र एक छोटे से फ़ूड स्टॉल की शक्ल में उसके सामने था। जिसके आगे कुछ टेबल कुर्सी पूरे सेटअप को किसी मिनी ढाबे का रूप देने की नाकामयाब कोशिश की गई थी। 'आइए साहब,' साहिल के करीब पहुँचते ही स्टॉल के पीछे से आवाज़ आई। 'गरमा गरम ...