देहरादून के जंगल का वो खौफनाक राज़: घंटी की आवाज़ और बिना सर वाला जानवर
जुलाई दो हज़ार अठारह में, एक बीस साल की लड़की जाह्नवी, जिसने अपने कॉलेज का पहला साल पूरा कर लिया था, छुट्टियों के लिए अपने घर देहरादून लौटी। देहरादून, जहाँ चारों तरफ पहाड़ और जंगल ही जंगल थे, जाह्नवी का बचपन यहीं बीता था। उसे यहाँ के जंगल के रास्ते अच्छे से याद थे, क्योंकि वो अक्सर अकेले या परिवार के साथ घूमने निकलती थी।
जाह्नवी की सबसे पसंदीदा जगह थी एक झील, जो जंगल के बीचों-बीच थी। यह झील बहुत बड़ी नहीं थी, पर बेहद खूबसूरत थी। जाह्नवी को वहाँ समय बिताना बहुत पसंद था। वो अपने घर से गाड़ी लेकर निकलती, कुछ रास्तों से होती हुई झील तक पहुँचती। वहाँ पहुँचकर वो गाड़ी एक निर्धारित जगह पर खड़ी करती, जहाँ एक साइन बोर्ड लगा था कि झील तक जाने के लिए गाड़ी यहीं पार्क करें।
झील तक जाने का रास्ता जाह्नवी को अच्छे से पता था। वो एक घास के मैदान से गुजरती, जहाँ एक पतला-सा रास्ता था, जो जंगली जानवरों के आने-जाने के लिए था। इस रास्ते के साथ एक छोटी-सी नहर बहती थी। नहर के किनारे-किनारे चलते हुए वो जंगल में प्रवेश करती और थोड़ा आगे बढ़कर झील तक पहुँच जाती। वहाँ बैठकर वो झील की खूबसूरती और आसपास के जानवरों को निहारती।
जाह्नवी को इस झील से गहरा लगाव था। उसे लगता था कि ये जगह सिर्फ़ उसी की है, और यहाँ आकर उसे सुकून मिलता था। वो कई सालों से यहाँ आती थी और कभी किसी अजनबी से नहीं मिली थी। इस बार, कॉलेज से लौटने के दो दिन बाद, वो फिर झील के पास गई, क्योंकि उसे यहाँ आए चार-पाँच महीने हो गए थे।
झील के किनारे कुछ देर बैठने के बाद, जब वो वापस लौट रही थी, उसे दूर से एक घंटी की आवाज़ सुनाई दी। ये आवाज़ उसे अजीब लगी, क्योंकि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था। आवाज़ जंगल की गहराई से आ रही थी, कभी बाएँ से, कभी दाएँ से, कभी तेज़, तो कभी धीमी। जाह्नवी को लगा शायद कोई जानवर है, जिसके गले में घंटी बंधी हो।
उसने सोचा कि थोड़ा और आगे बढ़कर देखा जाए कि आवाज़ कहाँ से आ रही है। लेकिन जैसे ही वो आगे बढ़ी, आवाज़ अचानक बंद हो गई। अब सिर्फ़ जंगल की कीड़ों-मकोड़ों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। तभी उसकी नज़र एक काले रंग की चीज़ पर पड़ी, जो दूर पड़ी थी। पास जाकर देखा तो वो एक जानवर की लाश थी, जिसका सिर गायब था।
जाह्नवी हैरान थी। उसने देखा कि जानवर का सिर बहुत साफ़-सुथरे तरीके से काटा गया था, जैसे किसी ने बड़े आराम से उसे धड़ से अलग किया हो। धड़ को कोई नुकसान नहीं पहुँचा था, और लाश से कोई बदबू भी नहीं आ रही थी। जाह्नवी को अंदाज़ा हुआ कि ये अभी-अभी मारा गया है, और जिसने ये किया, वो शायद अभी भी आसपास है।
वो घबरा गई, लेकिन हिम्मत करके वापस अपनी गाड़ी तक लौटी और घर चली गई। कुछ दिन बाद, उसका मन फिर झील जाने का हुआ। उसने अपने माता-पिता को बताया और गाड़ी लेकर निकल पड़ी। शाम के चार बजे वो झील पर थी। बादल गरज रहे थे, और बारिश होने वाली थी। जाह्नवी उस जगह गई, जहाँ उसे पहले मरा हुआ जानवर मिला था।
वहाँ पहुँचते ही बारिश शुरू हो गई। अंधेरा बढ़ रहा था, और विज़िबिलिटी कम थी। वो वापस लौटने लगी, तभी उसके सिर पर कुछ टकराया। उसने देखा कि उसी जानवर की लाश एक रस्सी से पेड़ पर लटकी थी, और उसका कटा हुआ सिर उसके हाथों में बंधा था। जाह्नवी को उल्टी आने लगी। उसे यकीन था कि कोई उसे देख रहा है।
बारिश और तेज़ हो गई, और जंगल में अंधेरा छा गया। तभी उसे फिर से वही घंटी की आवाज़ सुनाई दी। डर के मारे वो भागने लगी। उसने अपने फोन से माता-पिता को कॉल किया और रोते हुए मदद माँगी। उसके पिता ने कहा, "फोन मत काटना, हम आ रहे हैं।" वो तुरंत गाड़ी लेकर जंगल की ओर निकले।
जाह्नवी भाग रही थी, और घंटी की आवाज़ उसका पीछा कर रही थी। बारिश रुक चुकी थी, और चाँद की रोशनी में उसने पीछे देखा। एक लंबा, राक्षस जैसा प्राणी उसकी ओर बढ़ रहा था, जिसकी कमर पर घंटी बंधी थी। वो चीखते हुए भागी। उसी वक्त उसके माता-पिता उसे मिले, और तीनों गाड़ी तक भागे।
घर पहुँचकर उन्होंने पुलिस को सारी बात बताई। जाह्नवी को अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसे मामूली खरोंचें मिलीं। अगले दिन पुलिस ने जंगल की तलाशी ली, लेकिन ना कोई लाश मिली, ना कोई संदिग्ध चीज़। सिर्फ़ एक टी-शर्ट मिली, जो एक पत्थर के नीचे दबी थी। पुलिस ने इसे किसी दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति का काम माना, जो जाह्नवी को डराने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन जाह्नवी को यकीन था कि जो उसने देखा, वो कोई इंसान नहीं था। उसने फिर कभी उस झील की ओर जाने की हिम्मत नहीं की।
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