Noida के लड़के का खौफनाक अनुभव: जब घर में अकेली रात को मामा की आत्मा आई
दोस्तों, मेरा नाम विकास गोनियाल है। मैं नोएडा की घोड़ा कॉलोनी का रहने वाला हूँ। ये कहानी मेरे मामा की है। मेरे मामा की शादी को पाँच साल हो चुके थे, लेकिन समय के साथ मामा और मामी के बीच अनबन होने लगी। एक दिन नाराज़ होकर मामी अपने मायके चली गईं। मामा के बार-बार बुलाने पर भी वो वापस नहीं आईं। छह महीने बीत गए, लेकिन मामी नहीं लौटीं। धीरे-धीरे मामा डिप्रेशन में चले गए।
मेरे माता-पिता ने मामा को कुछ समय के लिए उत्तराखंड के गाँव भेज दिया, यह सोचकर कि वहाँ का स्वच्छ वातावरण उनके मन को हल्का करेगा। लेकिन वहाँ भी मामा की हालत और बिगड़ गई। दोस्तों, मामा इतने परेशान हो गए कि उन्होंने मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली। जैसे ही उनके निधन की खबर आई, सभी रिश्तेदार और मेरे माता-पिता गाँव चले गए। उस वक्त घर पर कोई नहीं था, इसलिए मैं अकेला ही रुक गया।
मैं मामा के बहुत करीब था। वो मुझसे उम्र में ज्यादा बड़े नहीं थे। मैं 22 साल का था और वो 25 के। उस रात मैं अकेले घर पर सोया था। अचानक रात तीन बजे मुझे लगा कि कोई मेरी चादर खींच रहा है। पहले मैंने इसे नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब ये दोबारा हुआ, तो मैंने लाइट जला दी। मैं बहुत डर गया था। मुझे लगा शायद ये मेरा वहम है, लेकिन बार-बार ऐसा होने पर मैं समझ गया कि कुछ तो गड़बड़ है।
मैंने लाइट जलाए रखी और चादर ओढ़कर आँखें खुली रखीं। फिर भी चादर बार-बार नीचे खींची जा रही थी। थोड़ी देर बाद मुझे लगा जैसे कोई मेरी छाती पर चढ़ रहा है, जैसे कोई मुझसे बात करना चाहता हो। मैं बहुत डर गया था। हिम्मत करके मैं उठा और चिल्लाने लगा, "मुझे पता है मामा, आप मेरे आस-पास हैं। आप मुझसे कुछ कहना चाहते हैं।" मैं रात भर चिल्लाता रहा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
अगले दिन होली थी। मेरी बहन और जीजा जी घर आए थे। मामा की खबर सुनकर वो भी दुखी थे। हम सब बैठे थे कि अचानक मेरी बहन बेहोश हो गई। मैं घबरा गया। पानी मारने पर वो उठी और मामा की तरह बात करने लगी। ऐसा लगा जैसे मामा ही बोल रहे हों। वो कहने लगे, "मैं जल रहा हूँ, मुझे बचा लो।" ये देखकर जीजा जी हँसने लगे, लेकिन तभी मामा की आत्मा ने उन पर हमला कर दिया। जीजा जी बेड से पाँच फीट दूर जा गिरे।
मैंने मामा की आत्मा से हाथ जोड़कर शांति की प्रार्थना की। इसके बाद वो शांत हो गए और मेरी बहन से निकल गए। लेकिन चादर खींचने का सिलसिला जारी रहा। मैं हर रात मामा से शांति की प्रार्थना करता। एक दिन मैंने ये सारी बातें अपने माता-पिता को बताई। गाँव में पंडित जी ने बताया कि मामा की अकाल मृत्यु के कारण उनकी आत्मा भटक रही है। उनके नाम से नारायण बलि पूजा की गई, तब जाकर मामा को शांति मिली।
इस घटना के बाद मुझे आत्माओं पर यकीन हो गया। मैं और मेरा दोस्त सूरज रातों को सुनसान रास्तों पर भूतों की तलाश में घूमने लगे। कई रातें बीतीं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। सूरज मुझे इन सब से दूर रहने की सलाह देता था। फिर भी, मैंने एक रात शमशान घाट जाने का प्लान बनाया। सूरज मना करता रहा, लेकिन मैं उसे जबरदस्ती ले गया।
शमशान घाट के पास सुनसान रास्ते पर मैं भूतों को ललकारने लगा, "कोई है तो बाहर निकलो!" लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैंने फिर कहा, "मैं ब्राह्मण हूँ, काली का भक्त हूँ, हिम्मत है तो सामने आओ!" फिर भी कोई नहीं आया। निराश होकर हम जंगल से बाहर निकलने लगे। तभी अजीब सी आवाजें सुनाई दीं। हम दोनों डर गए। उन आवाजों ने हमें यकीन दिला दिया कि भूत और आत्माएँ सचमुच होती हैं।
एक और घटना तब हुई जब मैं और सूरज गढ़मुक्तेश्वर गए। रात को स्नान करने के बाद हम वापस लौट रहे थे। रास्ते में जंगल पड़ता था। सूरज ने वॉशरूम के लिए बाइक रोकने को कहा। हम सिगरेट पी रहे थे कि अचानक एक बुढ़िया हमारे सामने आ खड़ी हुई। जंगल में कोई घर या दुकान नहीं थी, फिर ये बुढ़िया कहाँ से आई? वो हमें घूरने लगी और चिल्लाई, "मेरे परिवार को मारकर यहाँ दफना दिया!"
मैं डर के मारे हनुमान चालीसा पढ़ने लगा। सूरज ने कहा, "जल्दी चलो, ये छलावा है।" हम बाइक पर बैठे, तभी बुढ़िया हम पर झपटी, लेकिन बाइक आगे बढ़ चुकी थी। आगे एक दुकान पर रुककर हमने दुकानवाले को सारी बात बताई। उसने कहा कि इस जंगल में रात को छलावा घूमता है। इस घटना के बाद हमने रात में गढ़मुक्तेश्वर जाना बंद कर दिया।
दोस्तों, ये सारी घटनाएँ सच्ची हैं। इनके बाद मुझे यकीन हो गया कि आत्माएँ और भूत होते हैं। आज भी ये किस्से याद करके रूह काँप जाती है।
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