साहिल की रात की भूख और उस कबाब स्टॉल का गहरा राज
साहिल आधी रात को अंजान रास्तों पर अपनी गाड़ी भगाए जा रहा था। उसे इस शहर में शिफ्ट हुए सिर्फ पाँच दिन ही हुए थे। कंपनी के नए ब्रांच में काम का भारी वर्क लोड होने की वजह से उसे पिछले दिनों में घर से ऑफिस और ऑफिस से घर के रास्ते के अलावा कहीं और भटकने का मौका नसीब नहीं हो सका था। यूँ तो आज का दिन भी बाकियों से कुछ अलग नहीं था।
लेकिन आज भूख के नाम पर उसके पास दूसरी सड़कों को छान मारने का वाजिब कारण था। लिहाजा, जिस वक्त तक आधे से ज्यादा शहर काम से फारिक होकर बिस्तर में पड़े-पड़े फोन की स्क्रीन नापता है, वो शहर की सड़कें नाप रहा था पिछले पौने घंटे से। मनचाही जगह न मिलने की झुंझलाहट उसके चेहरे पर दिखाई देने लगी थी। थक हार कर उसने घर जाने वाले दूसरे रास्ते पर गाड़ी मोड़ ली।
कि तभी एक जानी पहचानी खुशबू ने उसे ब्रेक पर दबाव बढ़ाने पर मजबूर कर दिया। खुशबू का केंद्र एक छोटे से फ़ूड स्टॉल की शक्ल में उसके सामने था। जिसके आगे कुछ टेबल कुर्सी पूरे सेटअप को किसी मिनी ढाबे का रूप देने की नाकामयाब कोशिश की गई थी। 'आइए साहब,' साहिल के करीब पहुँचते ही स्टॉल के पीछे से आवाज़ आई।
'गरमा गरम कबाब बन रहा है, खास आपके लिए।' इस बार आवाज के साथ ही एक बूढ़ा चेहरा भी रोशनी में आया। कुछ ही देर बाद साहिल गरमा गरम कबाब पर हाथ साफ कर रहा था। बूढ़ा किसी आज्ञाकारी नौकर की तरह उसके सिर पर खड़ा था। 'वाह क्या टेस्ट है!' साहिल चहकते हुए बोला। 'सब अपने छोटू के हाथों का कमाल है साहब,' बूढ़े ने सिर नवाकर मुस्कान के साथ जवाब दिया।
खाना खत्म करके साहिल ने इच्छा जाहिर की कि वो पैसे छोटू को देना चाहता है। जिस पर बूढ़ा मुस्कुराया और आवाज़ लगाया, 'छोटू, ए छोटू!' स्टॉल के एक तरफ लगे पर्दे के पीछे से एक कद्दावर आकृति बाहर आयी। जिसके सामने आने पर साहिल ने पाया कि वो मजबूत शरीर वाला एक नौजवान है जो एक स्टॉल पर काम करने वाला तो कहीं से भी नहीं लग रहा था।
अच्छी क्वालिटी की जीन्स, दाढ़ी को दिया हुआ वो शेप और ट्रेंडिंग हेयर कट बंदे के नाम और काम में हरगिज़ मैच नहीं थे। उसने कंधे से कमर तक के भाग को शॉल से कुछ इस कदर ढका रखा था कि भीतर देखा नहीं जा सकता था। फिर भी साहिल को कुछ तो अजीब लग रहा था। 'तो तुम हो छोटू?' कुछ देर की चुप्पी को भंग करते हुए साहिल बोला। 'मुझे लगा कि खैर बताइए कितना हुआ?' 'बीस रुपए,' बूढ़े ने उसी मुस्कान के साथ कहा।
साहिल ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। कुछ सोचने के बाद वो बोला, 'ना, ये कबाब बीस रुपये का नहीं है।' कहकर उसने वॉलेट से दो सौ का नोट निकाला और मुस्कुराते हुए उसे छोटू की ओर बढ़ाया। था कि अचानक से छोटू ने लपक कर नोट अपने मुँह से पकड़ा और अपने से कुछ ही दूर खड़े बूढ़े को सौंप दिया।
'ये... ये...' साहिल भौचक्का सा कुछ बोलने को हुआ कि आगे के नज़ारे से उसकी बोलती बंद हो गयी। छोटू के कंधे से शॉल सरक गई। साहिल ने देखा, उसके दोनों हाथ कोहनी से गायब थे। शॉक के मारे बड़ी हो चुकी आँखों ने जब बूढ़े की ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक अजीब मुस्कान थी।
'कहा था ना, सब अपने छोटू के हाथों का है।' 'मैंने डेढ़ सौ दिया है,' छोटू ने उसके बगल से गुजरते हुए कहा, जो आगे जाकर अंधेरे में कहीं गुम हो गया। 'देश के किसी कोने में आधा अधूरा साहिल आज फिर इंतज़ार कर रहा है कि कोई उसकी अदा की गई कीमत से ज्यादा देकर उसकी आजादी खरीद ले। क्या आप खाना चाहेंगे कबाब?'
हॉस्टल प्रैंक का भयानक अंजाम: जब टॉपर को डराने की कोशिश बन गई मौत की वजह
प्रिंसिपल की ऑफिस का दरवाजा खुला और दो लोग बाहर निकले। दोनों की शक्लों पर फटकार बरस रही थी। "साला टॉपर," एक बोला जो शक्ल से ही लीडर टाइप का लग रहा था। "उसकी क्या गलती है यार?" दूसरे ने उसकी ओर गर्दन घुमाकर सवाल किया। "अबे सारी गलती उसी की है! इतने ज़्यादा मार्क्स लाने की ज़रूरत ही क्या है? ना तो वो इतना अच्छा स्कोर करता ना ही सर उसके साथ हमें कंपेयर करते हुए इतना सुनाते!" पहले ने जबड़ा भींचते हुए जवाब दिया।
"वाह, लॉजिक तो कमाल का है यार!" दूसरा बोला। "अरे भाई, अगर वो नहीं होता तो कोई और होता और वैसे भी मार्क्स से ज़्यादा हमारी कम अटेंडेंस की वजह से सुनाया हमें।" "वो सब मैं नहीं जानता। टॉपर के बच्चे को मज़ा चखाना ही पड़ेगा। तभी मेरे मन को शांति मिलेगी," पहले ने कुछ सोचने के बाद चिढ़े हुए स्वर में कहा।
"भाई बस, और कुछ नहीं सुनना, सिर्फ इतना - तो तू मेरा साथ देगा या नहीं?" पहले ने दूसरे को इंटरप्ट करते हुए पूछा। "तेरे से बाहर मैं कैसे जा सकता हूँ?" दूसरे ने सिर झुकाते हुए धीमे स्वर में कहा। इस तरह दोनों दोस्त मिलकर टॉपर से बदला लेने की एक अजीब योजना पर सहमत हुए।
अगला दिन सुबह का समय। हॉस्टल का स्टडी रूम। योजना के मुताबिक तैयारी शुरू हुई। "कैमरा नज़र तो नहीं आया?" पहले ने पूछा। "नहीं भाई, लेकिन एक बार फिर..." दूसरा कुछ हिचकिचाया। "चुप हो जा यार! वो मर ही जाएगा," पहले ने उसे बीच में ही टोक दिया, अपनी बात पर अड़ा हुआ।
"ज़्यादा से ज़्यादा डरकर भाग जाएगा, घर चला जाएगा और एक साल स्किप कर देगा। हमारी तो जान छूटेगी," पहले ने अपनी योजना का फायदा बताया। "चल, रेडी हो जा, वो कभी भी आ सकता है।" पहले ने एक काला मास्क उठाया और हूडी वाली जैकेट पहनी, खुद को छिपाते हुए।
कुछ देर में लाल रंग सूखने लगा। दूसरे ने उसे थोड़ा अपने चेहरे और टी-शर्ट पर लगाया ताकि यह असली लगे। फिर वह दर्द से कराहने की एक्टिंग करते हुए फर्श पर लेट गया। पहले ने एक स्प्रिंग वाले चाकू को उस नकली खून में डुबाया और 'वार' करने के लिए दूसरे के सिर के पास खड़ा हो गया।
इतनी सुबह हॉस्टल में अकेला टॉपर ही जल्दी उठता था, सो किसी और के आने की संभावना काफी कम थी। यह उनके प्लान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। कुछ ही समय बाद जैसे ही कमरे के मुहाने पर उसका चेहरा दिखा, नाटक शुरू करने का इशारा मिल गया।
पहले ने स्प्रिंग वाले चाकू से दूसरे पर किसी पागल की तरह हँसते हुए 'वार' करना शुरू कर दिया। दूसरा दोस्त पूरी शिद्दत से दर्द से छटपटाने की एक्टिंग कर रहा था, हर वार पर शरीर को झटका देकर अपने रोल को बखूबी निभा रहा था।
कमरे में रोशनी वैसे ही कम थी, ऊपर से एक ने मास्क और हूडी पहन रखी थी तो दूसरे का चेहरा लाल रंग की वजह से ठीक से पहचान में नहीं आ रहा था। इस खौफनाक दृश्य को देखकर कुछ सेकंड्स के लिए मूर्ति बन चुके टॉपर के होश ठिकाने आए।
और वो ज़ोरों से चीखते हुए कमरे से बाहर, नीचे की ओर दौड़ा। "चल जल्दी चल!" उसकी नज़रों से ओझल होते ही पहले ने दूसरे को हाथ देते हुए उठने को कहा। अब टॉपर की चीख के साथ कई और आवाज़ों ने मिलकर अभी भी सो रहे बाकी स्टूडेंट्स की नींद में खलल डालना शुरू कर दिया था।
कुछ देर बाद किसी ने उनके रूम का दरवाज़ा ज़ोरों से खटखटाया और आँखों में नींद लिए दोनों दोस्त बाहर निकले, अनजान बनने का नाटक करते हुए। बाहर लॉबी में कुछ लड़के सभी रूम्स के दरवाज़े खटखटाते हुए सबको सीढ़ियों पर आने को कह रहे थे। लड़कों में टॉपर भी था।
जो उनके दरवाज़ा खोलने पर पीछे मुड़ा और सीढ़ियों की ओर थरथराती ऊँगली से इशारा करने के बाद बाकी लड़कों के पीछे तेज़ी से दौड़ गया। "और ये सभी सीढ़ियों की ओर?" दूसरे ने हैरान होते हुए पहले से सवाल किया। "अबे, ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ तो लगेंगी ही ना!" पहले ने झुंझलाते हुए कहा।
दोनों दोस्त भी बाकी स्टूडेंट्स की भीड़ को चीरते हुए आगे पहुँचे। सीढ़ियों के पास पहुँचते ही सामने का नज़ारा देखकर उनकी साँसें ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गईं। उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। टॉपर की लाश औंधे मुँह सीढ़ियों के नीचे पड़ी हुई थी।
उसके फटे सिर से निकल रहा खून मानो सफ़ेद टाइल्स पर अपनी मौत की कहानी लिख रहा था। यह उस मज़ाक का भयानक और अनपेक्षित अंजाम था जिसे उन्होंने सिर्फ टॉपर को डराने के लिए रचा था। उनकी शरारत एक जानलेवा ट्रेजेडी में बदल गई थी।
दोनों दोस्तों ने जब टॉपर की बेजान लाश को देखा तो उनके पैर थर-थर काँपने लगे। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनका एक छोटा सा मज़ाक इतना खौफनाक हो सकता है और उनके हाथों यह क्या हो गया था। उनका चेहरा डर और पछतावे से सफेद पड़ गया था।
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