जंगल में काला जादू का गड्ढा खोदा और एक अनदेखी ताकत पीछे पड़ गई
उस वक्त कुछ बच्चे खेलते-खेलते उस जगह को खोदने लगते हैं. मैं अपने एक दोस्त के साथ उसी तरफ से जा रहा था. मेरी नजर उन बच्चों पर पड़ी. पास जा के देखा तो उन्होंने दो फीट गहरा गड्ढा कर दिया. गड्ढे में एक polythene के अंदर कुछ सामान बांधा हुआ था। हमें देखते ही वो बच्चे भाग गए। हमने गड्ढे में देखा एक polythene के नीचे मरा हुआ कौवा पड़ा था। उसकी आँख से बहता खून अभी भी ताज़ा था।
दोस्त ने कहा ये जंगल में किसने दबा. होगा इसे polythene के अंदर काली चीजें थी जैसे लौंग, काली मिर्च, राई के दाने काली दाल और काला धागा ये देखते ही हम दोनों आगे बढ़ गए क्योंकि ऐसी चीजों में हाथ डालना ठीक नहीं होता। जितना दूर रहो उतना अच्छा है. थोड़ा आगे जा के मैंने उसे रोका यार ये बच्चे यहाँ कैसे आए होंगे? दोस्त ने कहा छोड़ ना यार नहीं भाई एक काम करते हैं उस गड्ढे में वापस से मिट्टी डाल के आ जाते हैं
दोस्त के मना करने के बाद भी मैं वहाँ पे चला गया और मेरे पीछे-पीछे. आ गया उसने कहा जो भी करना है थोड़ा जल्दी कर अँधेरा होने वाला है मैं गड्ढे के पास जाके रुक गया और नीचे देखते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी दोस्त आ के कहता क्या हुआ तुझे उसने भी नीचे देखा तो वहाँ पर अब कौवे की. लाश नहीं थी ना उस जगह कोई खून पड़ा दिखाई दिया
मन में अलग अलग ख्याल आ रहे थे college के बाद. तीन बजे मैं घर के लिए निकला रास्ते में मुझे फिर से वो जगह दिखाई दी जहाँ हम कल गए थे मेरे मन में आया कि एक बार जा के देखू वहाँ अभी तो दोपहर का time है बस देख के आ जाऊँगा उस वक्त मुझे पता नहीं था कि मैं अपनी life की सबसे बड़ी भूल करने. रहा हूँ
नहीं मुझे यहाँ नहीं होना चाहिए ये जगह ठीक नहीं जैसे ही मैं घुमा वापस जाने के लिए गड्ढे में से कौवा एकदम से फड़फड़ाता हुआ उड़ गया और जो भी सामान था ये polythene में वो बाहर बिखर गया. तब एक हवा के झोकी से माँ की थोड़ी सी मिट्टी उडी मुझे feel हुआ कोई मेरे सामने से गुजरा है अभी मैं देख रहा था जैसे कोई झाड़ियों से टकराता हुआ निकल गया है
मैं बिलकुल शांत रहते हुए उस जगह के बाहर निकल रहा था मुझे पता है अगर मैंने panic किया तो मेरे साथ कुछ भी हो सकता है अब तक मैं इतना तो समझ गया था कोई अनदेखी entity है यहाँ और इस पूरी जगह पर मेरे. शायद कोई नहीं है मुझे बस बाहर निकलना है यहाँ से मैंने अपना face सामने बाहर की तरफ घुमाया और मुड़ के normal चलता हुआ जाने लगा
बस थोड़ी दूर और फिर मेरी स्कूटी से मैं निकल जाऊँगा। मेरे कान के पीछे से पसीना टपक रहा था। मुझे वहाँ एक ठंडी हवा सी आई। मैं वहीं रुक गया, आंखें दाएं बाएं घुमा के देखता हूँ। तभी कोई मेरे पीछे से चलता हुआ मुझे बाकायदा किसी के कदमों की आहट महसूस हुई। कोई चलता हुआ मेरे सामने आ के खड़ा हो गया है। मैं किसी को देख नहीं पा रहा, बस मैं खड़ा रहा।
इस बार मुझसे हिला तक नहीं गया। मैं घबरा चुका था कि ये एंटिटी मुझे यहाँ से बाहर नहीं जाने देगी। मैं लेफ्ट में एक कदम आगे बढ़ा तो वो मेरे सामने आ जाती। राइट में एक कदम आगे करूँ तो वो इस तरफ आ जाए। अभी तक तो मेरे. किया था, पर अब मुझे किसी की बड़ी भारी सी आवाज़ आई। इस आवाज़ को सुनते ही मैं काँपने लगा।
और अब मेरी हिम्मत ने जवाब दे दिया। इसी बीच एकदम से मेरा फोन बजा। मैं अपने फोन में बजरंग बाण मंत्र की रिंगटोन लगा के रखता था। और रिंगटोन की आवाज़ सुनते ही वो एंटिटी मुझसे दूर हो गयी। अगर तो मैंने फोन उठाया, ये एंटिटी वापस मेरे पीछे पड़ जाएगी।
मैंने फोन को बजने दिया। कुछ देर फोन बजने के बाद रिंगटोन बंद हो गयी और किसी के कदमों की आहट मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ने लगी। एकदम से दुबारा फोन बजा। मैं इस जगह पर रुक नहीं सकता था। मैंने अपने कदम आगे की तरफ बढ़ाए।
फोन पॉकेट से निकाला और देखा तो मेरे दोस्त का कॉल था। मैंने अपने कदम आगे बढ़ाते हुए जल्दी से एक मैसेज कर दिया, "तू कॉल करता रह।" वो बार-बार मुझे कॉल करता रहा और उसकी रिंगटोन से वो एंटिटी मेरे पास नहीं आ पा रही थी। उसने मुझे छह बार कॉल किया और मैं भागते-भागते बाहर आया।
बाहर आते ही मैंने उसकी कॉल उठाई। मेरी साँसें चढ़ी हुई थीं। उसने पूछा, "क्या हुआ तुझे? इतनी साँसें क्यों चढ़ी हैं?" मैंने उसे बताया कि मुझसे अभी क्या गलती हुई थी, जो मुझे नहीं करना चाहिए था वो मैं करने चला गया। उसकी तबियत ठीक नहीं थी, तो उसने ज़्यादा कुछ कहा नहीं।
बस इतना कहा, "तू खाना खाने शाम को मेरे घर आ जाइयो और किसी को. मत बताना।" इसके बाद मैं वहाँ से निकल के घर पहुँचा। नहा धोके दोस्त से मिलने चला गया। उसे अभी भी बुखार था। उस होटल से आने के बाद से उसकी तबियत खराब है।
इस हादसे से मैं इतना ज़्यादा डर चुका था कि मुझे कई दिन लगे खुद को संभालने में। जाने-अनजाने में वो बात याद आ जाती है तो डर जाता हूँ मैं आज भी। मेरी लाइफ के वो चौबीस से तीस घंटे बड़े भारी थे हम दोनों के लिए।
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