मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर जिन्होंने मेरी मदद की वो लोग जिंदा ही नहीं थे
आज उस बात को सात साल बीत गए हैं लेकिन फिर भी वो रात आज भी मुझे इस तरह से याद है जैसे कल की ही बात हो. मेरा नाम Rahul है उम्र चौंतीस साल काम है photographer और काम के सिलसिले में मुझे यहाँ वहाँ घूमना पड़ता है क्या पता कहाँ अच्छी तस्वीर मिल जाए.
तो ये बात तब की है जब मुझे नया नया चस्का लगा photography का वैसे मैं engineering कर रहा था पर मेरा मन किसी और काम में था घर पर काफी ज्यादा डाँट फटकार. थे शौक को अपना career बनाने का पर वो कहते है ना ज़िद है बस और हम बन गए जो हम बनना चाहते थे ताकि मरते समय ये बात दिमाग में ना. जाए कि जो हम करना चाहते थे वो कर ही नहीं पाए. खैर पर आज जो मैं बताने जा रहा हूँ वो बात मुझे आज भी खाती है.
मुझे किसी ने बताया. कि मेरे शहर से करीब दो सौ किलोमीटर दूर एक जंगल है जिसमें मुझे कई खूबसूरत तस्वीरें मिल सकती हैं. और ये खूबसूरत तस्वीरें मुझे रात के समय में मिलेगी. और हम भी अपना झोला झंडा उठाकर निकल पड़े पहले train फिर bus और फिर auto का सफर काफी थका देने वाला था काफी रात में मैं वहाँ पहुँचा.
लेने की हिम्मत नहीं थी तो रात को forest department वालों के guest house में रुक गया सुबह करीब तीन बजे मुझे लगा कि कोई शायद कमरे की खिड़की उसे देख रहा है. मैंने light जलाई तो कुछ नहीं बाहर torch लगाकर देखा तो भी कुछ नजर नहीं आया आप पेड़ की टहनियाँ ज़रूर हिलती हुई नज़र आए बाबूजी सो जाए ये तो. का काम है कुछ नहीं कोई जंगली जानवर आ गया होगा कुछ नहीं है चौकीदार ने कहा मगर बाबूजी को नींद कहाँ
खैर जैसे सोने की कोशिश की मेरे ऊपर एक छोटा. सा पत्थर लगा अचानक मैं उचक कर बैठ गया फिर light जलाए फिर torch जलाए फिर कुछ नहीं था तो फिर चौकीदार ने कहा अरे कुछ नहीं होगा बाबूजी सो जाए.
फिर से मैं सोने की कोशिश करने लगा अचानक ही अब हँसने की आवाज के साथ पत्थर लगा और फिर वो पूरा कार्यक्रम दोबारा से हुआ मैं छल्ला गया. एक तो नींद ऊपर से नहीं आ रहे थे और ऊपर से ये सब अब दिमाग खराब हो रहा था नींद गायब हो गए थे उस house से मैं बाहर निकल आया पता करने के लिए.
चौकीदार बोला बाबूजी कुछ नहीं यार जाइए सो जाइए बच्चे तो बस ज़िद है निकल गए थोड़ा आगे चलने पर मुझे कुछ आहट सुनाई दे मैं सतर्क. हो गया ये art इंसान के नहीं थे कुछ भारी भरकम चला रहा था पेड़ की लेकर मैंने देखा तो क्या देखता हूँ ये झाड़ियों को छिड़कते हुए बड़े. बड़ा सींग वाला एक जंगली भैंसा चला रहा है मैंने ज़िंदगी में इतना बड़ा भैंसा कभी नहीं देखा था
मेरी साँस ऊपर नीचे होने लगी मैं चुपचाप साँस. के पेड़ के साथ दुक्का रहा जैसे ही वो निकला मैं धीरे से वहाँ से निकलने लगा कि तभी मेरे पैरों के नीचे आकर के पहनी चटकी और वो मेरे सामने आ गया.
तो साँसे ही अटक गए मुझे कुछ नहीं सूझा वो बड़ी तेजी से मेरी तरफ आया मुझे तो जैसे काँट मार गया मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि अब क्या करूँ लग रहा. ताक़त कोई बाहरी truck मेरे सामने ही आ रहा हो, मेरी सिट्टी गुम हो गई, आँखों के सामने अँधेरा छा गया, वो दौड़ता हुआ मेरी तरफ ही बढ़ रहा था, कि अचानक मुझ पर. बेहोशी छा गए
जब होश आया तो देखा कि मेरी आँखों के सामने खरपतवार की छतें और आस पास नज़र उठाकर देखा तो कच्ची मिट्टी के दीवारें थे. ज़ेम पर मोड़ती दल ये सब बने हुए थे मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मैं यहाँ कैसे आ गया आसपास का माहौल देखकर मैं थोड़ा आज़ाद सा हो गया था. मैं कहाँ गया
तभी अचानक मैंने सिर घुमाकर देखा तो मेरी नज़र पार पड़े मैं एकदम से चौंक गया और एकदम से कांपने भी लगा मैंने देखा कि उस. भैंसे का सिर मेरे सामने पड़ा था और बाहर खून बिखरा पड़ा था तभी अचानक मेरे कानों में एक बड़े मधुर सी आवाज़ पड़ी बाबा बाबा.
Rahi को गुस्सा गया देखा वो एक अठारह उन्नीस साल के बदले से बड़ी बड़ी आँख है लंबे लंबे बाल बदले होंठ तीखे नए नक्शे बड़ी. अदा से मेरे पास आकर बैठी हुई एक लड़के थे मैं कहाँ हूँ और बीवी की आँख ऐसे पहुँच गया मैंने पूछा तो उस लड़की ने हँसकर जवाब दिया.
तुम पहुँचे नहीं बाबू पहुँचाए गए हो यहाँ जंगल में जाना तो अगर हम नहीं होते तो आज तुम धरती पर नहीं होते ये जो सांड है ना ये तुम्हें मार ही डाल. अरे बाबू तुम्हें होश आ गया बाजी का है आज तो खींचते नहीं तो बेटा आज तुम्हें यमराज ले ही जाता वो तो अच्छा हुआ कि बिटिया वहीं पर. वरना पता नहीं क्या हो जाता
हम इस सांड को मारना नहीं चाहते थे मगर ये पागल सांड है इसे रोकने का और कोई तरीका नहीं था जिसके बाद उन लोगों ने मुझे उठाया और फिर. कुछ फल फूल खाने को दिया है मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इतने घने जंगल के बीच में ये दोनों बाप बेटी शायद वो लोग बाप बेटी ही है यहाँ पर क्या कर रहे है.
उनसे पूछा भी तो उन्होंने कहा कि उन्हें इंसान पसंद नहीं इसलिए वो लोग यहाँ पर है जिसके बाद मैंने कुछ फल फूल रास्ते के लिए भी ले लिया है और फिर मैं वहाँ से. चलते चलते किसी तरह वापस अपने lodge तक पहुँचा चौकीदार ने मुझे देखते ही पूछा बाबू आप कहाँ चले गए थे इतनी रात घर अब तो सुबह होने वाली है
चौकीदार ने पहले तो मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक अच्छे से देखा और फिर कहा क्या उस बाप बेटी ने आपको बचाया कहीं लड़की का नाम. बिंदिया तो नहीं था इस पर मैंने कहा हाँ पर तुम्हें कैसे पता तू इस पर चौकीदार ने बताया बाबू दरअसल बिंदिया और उसका बाप.
पहले वहाँ पर रहा करते थे बरसात की एक रात को उनकी जो झोपड़ी थी उसके ऊपर एक बड़ा सा पेड़ गिर गया रात का समय था वो दोनों सो रहे थे और उसी पेड़ के चपेट में आकर. वो दोनों वहीं पर मारे गए। कहते हैं कि तब से उन्हीं की आत्मा वहाँ पर भटकती रहती है। मगर वो कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते। वो अच्छे लोग हैं। ये सुनकर मेरी तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर जिन्होंने मेरी मदद की वो लोग जिंदा ही नहीं थे
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