नजफगढ़ की वो खौफनाक रात: जब Papa रात 12 बजे
मेरा नाम युवराज है. मैं दिल्ली के नजफगढ़ से बिलोंग करता हूँ. आज मैं आपको अपने परिवार की एक बिल्कुल अच्छी कहानी के बारे में बताने जा रहा हूँ. असल में ये बहुत साल पहले की बात है और ये सब मेरे पापा के साथ हुआ था जो वो इलेवंथ क्लास में पढ़ा करते थे. आज तो ये एरिया बहुत डेवलप हो चुका है लेकिन उन दिनों नजफगढ़ इतना डेवलप नहीं था. बस किसी गांव की तरह ही हुआ करता था. लाइट भी बस तीन-चार घंटे ही आया करती थी.
तो एक बार ऐसा हुआ कि मेरे जो चाचा थे जो कि मेरे पापा से दस साल छोटे थे उनको अचानक से कोई बीमारी हो गई जिसकी वजह से हर वक्त उनकी तबीयत खराब रहती थी और उन्हें किसी भी समय दौड़े पड़ने लगते थे. उनको बहुत से डॉक्टर्स को भी दिखाया लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उनको क्या बीमारी हो गई है? चाचा का स्वभाव बहुत चिड़चिड़ा हो गया था.
और कई बार तो वो बिल्कुल काबू से भी बाहर हो जाते थे. मेरी दादी भूत-प्रेतों और देवी-देवताओं को बहुत मानती थी इसलिए दादी को पक्का यकीन था कि चाचा के ऊपर कोई ऊपरी परेशानी हो गई है. तो जब बहुत से डॉक्टर्स को दिखाने के बाद भी चाचा को कोई आराम नहीं मिला तो एक दिन मेरी दादी चाचा को अपने एक गुरुजी के पास लेकर गई जो कि गीता पाठ किया करते थे.
उन गुरूजी ने चाचा को देखा तो देखते ही पूछा कि इसने किसी का दिया कुछ खाया था क्या? दादी ने कुछ देर अच्छे से याद किया तो उनको याद आया कि हाँ कुछ महीने पहले एक औरत ने इसको लड्डू खिलाया था. लेकिन उस बात को बीते कई महीने बीत चुके थे और उसके बाद से ही चाचा की तबीयत खराब होना शुरू हो गई थी. गुरूजी ने बताया कि चाचा के ऊपर कुछ करवाया गया है.
और इसको ठीक करने का सिर्फ एक ही उपाय है और वो ये है कि आपके घर के किसी बड़े मर्द को पास के किसी पीपल के पेड़ से कुछ अखंडित पत्तियां तोड़ के लानी है. साथ ही उस पीपल के पेड़ पर एक कलावा भी बाँध के आना है. लेकिन एक बात जो गुरूजी ने कई बार जोर देकर कही थी वो ये कि वापस आते समय तुम्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना है चाहे कुछ भी हो जाए.
पीछे से कोई भी आवाज देके बुलाए पीछे मुड़ के नहीं देखना. वो इन सब चीजों को मतलब भूत प्रेत जैसी चीजों को बिलकुल भी नहीं मानते थे. यहाँ तक कि वो कई बार मेरी दादी को भी डांट दिया करते थे जब भी दादी उनसे इस तरह की कोई बात करती थी तो मेरी दादी ने ये काम मेरे पापा को सौंपा क्योंकि दादाजी के बाद घर में मेरे पापा ही सबसे बड़े लड़के थे.
और ये काम कोई मर्द ही कर सकता था और जैसा उन गुरूजी ने बताया था दादी ने पापा को सब कुछ अच्छे से समझा दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए तुमको पीछे मुड़ के नहीं देखना और ना ही नीचे गिरा हुआ कोई पत्ता उठाना है. सिर्फ पेड़ से तोड़ के पत्ते इकट्ठे करने हैं वो भी सिर्फ वही पत्ते जो अखंडित हो.
पापा खुद भी तब छोटे ही थे और इस काम को करने से बहुत डर रहे थे. लेकिन फिर भी अपने छोटे भाई के लिए वो ये काम करने को तैयार हो गए. ऊपर से उनको ये काम रात में बारह बजे से एक बजे के बीच ही खत्म करके आना था. अगर उन्हें देर हो जाती तो इसमें खुद उनकी जान भी खतरे में पड़ सकती थी.
लेकिन पापा ये काम करने को तैयार थे. आखिर में पापा उस रात अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर उस पीपल के पेड़ के पास जाने के लिए निकल पड़े. वो पीपल का पेड़ उनके घर से करीब तीन किलोमीटर दूर था और रास्ते में कहीं लाइट भी नहीं थी. चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था. पापा बताते हैं कि उस पेड़ के पास जाते हुए रास्ते में एक खंडहर जैसी बिल्डिंग पड़ती थी.
जब वो उस बिल्डिंग के सामने से निकल रहे थे तो उसके सामने एक पेड़ पे पत्तों के ऊपर कुछ बैठा दिखाई दे रहा था जो अजीब-अजीब सी आवाज निकाल रहा था. वो आवाज ऐसी थी जैसे कोई कांपते हुए पापा का नाम पुकार रहा हो. लेकिन पापा ये सब ignore करते हुए आगे बढ़े जा रहे थे. उस समय रास्ते में इतना सन्नाटा था कि उनको खुद की दिल की धड़कन तक सुनाई दे रही थी.
फिर जब तक papa उस पेड़ के पास पहुँचे तब तक बारह बज के बीस मिनट हो चुकी थी. पेड़ के पास पहुँच के पापा ने जल्दी से उछल-उछल के उसके कुछ पत्ते तोड़े और फिर वो कलावा जब वो अपने साथ ले के आए थे उसको भी पेड़ के चारों तरफ बाँध दिया. लेकिन वो कड़ावा बाँधते ही बाबा को सामने एक सांड खड़ा दिखाई दिया और वो सांड बहुत ही बड़ा था.
पापा बताते हैं कि उस सांड को देख के एक बार के लिए तो उनके पैर वहीं जम गए थे. वो सांड धीरे-धीरे पापा के पास बढ़ रहा था लेकिन पापा बताते हैं कि वो पक्का कोई सांड नहीं था क्योंकि वो इतना बड़ा था कि जैसे कोई हाथी हो पर उसकी दोनों आँखें बिल्कुल लाल चमक रही थी. पापा किसी तरह हिम्मत करके वहाँ से जाने लगे.
लेकिन वो सांड भी उनके पीछे-पीछे आ रहा था. पापा पीछे मुड़ के तो नहीं देख रहे थे लेकिन उनको पता था कि वो उनके पीछे ही आ रहा है क्योंकि वो सांड किसी राक्षस जैसी आवाज में हल्के हल्के से पापा का नाम भी ले रहा था. लेकिन फिर कुछ दूर जाने के बाद वो सांड एकदम से गायब हो गया. पापा बुरी तरह डर गए थे और ऊपर से उनको टाइम से घर भी पहुँचना था.
लेकिन फिर जब पापा घर से करीब एक किलोमीटर दूर थे तो उनको रास्ते में लगे एक पेड़ से मेरे चाचा लटकते दिखाई दिए. मतलब जैसे मेरे चाचा को किसी ने फांसी दे के लटका दिया हो. पापा ये देख के सन रह गए लेकिन रुके नहीं. लेकिन फिर एक बहुत ही अजीब चीज पापा के साथ होने लगी कि पापा बार-बार उसी पेड़ के पास से गुजरे जा रहे थे.
जैसे कि वो घूम फिर के बार-बार उसी जगह पहुँच जा रहे हो जहाँ चाचा की लाश उस पेड़ से लटकी हुई थी. लेकिन फिर एक बहुत ही अजीब चीज पापा के साथ होने लगी कि पापा बार-बार उसी पेड़ के पास से गुजरे जा रहे थे जैसे कि वो घूम फिर के बार-बार उसी जगह पहुँच जा रहे हो जहाँ चाचा की लाश उस पेड़ से लटकी हुई थी.
लेकिन फिर किसी तरह पापा भगवान का नाम लेते हुए अपने घर के करीब दो सौ मीटर दूर पहुंचे तो अचानक से उनको पीछे उनकी माँ मतलब मेरी दादी की आवाज सुनाई दी. दादी उनसे कह रही थी कि ये पत्ते जल्दी से मुझे दे दे मैं तेरे भाई को ठीक कर दूंगी. लेकिन पापा ने कोई जवाब नहीं दिया. आखिर में पापा बताते हैं कि जब वो घर पहुँचने वाले थे.
तो रास्ते में पड़ने वाले हर एक पेड़ से उनको बहुत ही गंदी बदबू और अजीब-अजीब सी आवाजें आ रही थी. लेकिन आखिर में पापा घर पहुँच गए. घर पहुँच गए पापा ने ये सब बातें दादी को बताए. इसके बाद अगले दिन दादी के गुरूजी ने कोई पूजा करके उन पत्तों की मदद से चाचा को बिलकुल ठीक कर दिया. लेकिन उस रात के बाद से मेरे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई थी.
अगले दो हफ्तों तक पापा को बहुत तेज़ बुखार रहा. लेकिन फिर पापा ठीक हो गए. लेकिन उस रात उन्होंने जो कुछ देखा था वो सब वो आज भी भूल नहीं सके हैं. उस वक्त पापा बहुत छोटे थे और वो सब चीजें उनके दिमाग में इस तरह से बैठ गई कि आज भी पापा को वो सब चीजें सपने में दिखाई देती हैं.
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