कंट्री साइड के उस सस्ते होटल में हमारी डरावनी रात: कमरे नंबर 6 का खौफनाक राज़
एक बार मैं और मेरे दो दोस्त country side में घूमने गए थे। दिन भर हम लोग आसपास के tourist attractions और कुछ shines देखते रहे। पहले तो हमारा plan था कि हम लोग शाम तक वापस घर चले जाएँगे, लेकिन वहाँ घूमते-घूमते हमें काफी देर हो गई।
तो हम लोगों ने डिसाइड किया कि आज रात वहीं कहीं एक सस्ता-सा होटल लेकर बस रात काट लेते हैं। हमें एक पुराना होटल दिखा। हमने पता किया तो वो काफी सस्ता था। हम लोगों ने जाकर रूम देखा। लेकिन रूम काफी छोटा था और वहाँ बस एक बेड ही पड़ा था।
हालांकि वो एक किंग साइज बेड था, पर हम तीन लोग थे। हमने मोटेल के ओनर से कहा कि हमें कोई दूसरा कमरा दिखाएं जिसमें कम से कम दो बेड हो। लेकिन ओनर ने कहा कि रूम्स तो हैं, बट अभी आपको इसी रूम में रुकना पड़ेगा।
बाकी रूम्स किसी ना किसी वजह से बंद पड़े हैं। किसी का फर्नीचर टुटा है तो किसी में पानी की व्यवस्था नहीं है। हमने उससे पूछा कि वो सब ठीक क्यों नहीं कराता? उसने कहा कि उसकी फाइनेंशियल कंडीशन अच्छी नहीं है और वो आने वाले वक्त में जरूर सुधार करेगा।
हम लोग रूम में आ गए और तीनों ने एक ही बेड पर सोने का डिसाइड किया। हमने अपना सामान रूम में रखा और बाहर डिनर करने के लिए निकल गए। लेकिन जैसे ही हम रूम से बाहर निकले, हमें एक छोटी सी बच्ची के चिल्लाने की आवाज आई।
मैं बताना भूल गया कि उस होटल के गलियारों में लाइट्स भी बंद थीं। बस रूम्स की लाइट ही जल रही थी। गलियारे से निकलने के लिए मोबाइल की टॉर्च करनी पड़ रही थी। तब हमें कोई परेशानी नहीं लगी क्योंकि हमारा मकसद सिर्फ रात बिताने का था।
बच्ची की आवाज सुनते ही हम लोग गलियारे के एक तरफ देखने लगे जहाँ से आवाज आ रही थी। हम मोबाइल टॉर्च की रोशनी में धीरे-धीरे उस तरफ चलने लगे। गलियारे के अंत तक पहुँच गए लेकिन वहाँ कोई बच्ची नहीं दिखी। इन्फैक्ट कोई भी नहीं दिखा।
हम लोगों ने उस बात को इग्नोर किया और डिनर के लिए बाहर चले गए। रात को जब हम लोग आकर सो गए तो करीब दो बजे फिर से उस बच्ची के चिल्लाने की आवाज आई। मैं तभी उठकर बैठ गया। वो आवाज बहुत ही डरावनी थी।
बच्ची की आवाज डरावनी तो नहीं हो सकती पर यहाँ डरावना कहने का मतलब है कि रूह कंपा देने वाली चीख। वो आवाज फिर से आई और इस बार मेरे दोनों दोस्त भी उठ गए। ऐसा लग रहा था कि वो आवाज हमारे बगल वाले कमरे से आ रही थी।
हम तीनों सोच ही रहे थे कि तभी हमारे कमरे के दरवाजे को किसी ने बहुत जोर से पीटना शुरू कर दिया। हम तीनों घबरा गए। लेकिन फिर हमें लगा कि शायद कोई मुसीबत में है और मदद चाहिए। शायद वही बच्ची भी इसीलिए चिल्ला रही है।
लेकिन जैसे ही हमने गेट खोलकर देखा, वहाँ कोई नहीं था। पूरे गलियारे में सन्नाटा था। फिर उसी सन्नाटे को चीरती हुई बच्ची की चीख फिर से आई और वो आवाज बगल वाले कमरे से ही आ रही थी। इस बार हमने सोचा कि जाकर देखा जाए।
हमने उस रूम के गेट को कई बार खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया। फिर अचानक उस बच्ची की आवाज़ फिर से आई, लेकिन इस बार थोड़ी दूर से। हमें लगा कि शायद हम गलत रूम में खटखटा रहे हैं।
और रात के उस वक्त अब बाकी कमरे सर्च करना बेवकूफी होती। तो हम सब लोग वापस अपने रूम में आ गए और सोने की कोशिश करने लगे। वो आवाज रात में कई बार आई, लेकिन हमने उसे इग्नोर कर दिया।
सुबह उठकर हम चेकआउट के लिए रिसेप्शन पर गए और मोटेल के ओनर से पूछा कि क्या कोई फैमिली वहाँ रुकी थी। उसका जवाब सुनकर हम लोग एक-दूसरे को देखने लगे। उसने कहा कि पिछली रात हम लोगों के अलावा वहाँ कोई नहीं रुका था।
हमने उसे उस बच्ची की आवाज के बारे में बताया और ये भी बताया कि हमें लगा कि वो आवाज हमारे बगल वाले कमरे से आ रही थी। तब उसने हमें एक ऐसी बात बताई जिसे सुनकर हम सबके होश उड़ गए।
उसने कहा कि वो कमरा पिछले छह साल से बंद है क्योंकि उस रूम को लेकर एक केस चल रहा था। जब हमने उससे पूछा कि केस क्या था, तो उसने बताया कि छह साल पहले उस रूम में एक बाप और उसकी छोटी बेटी आए थे।
रात में बाप ने पहले अपनी बेटी को गोली मारी और फिर खुद को। कारण क्या था, किसी को नहीं पता। लेकिन उस रात गोली चलने के बाद भी बच्ची की चीखने की आवाज सुनी गई थी।
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