नर्स की नाइट शिफ्ट का खौफनाक अनुभव: जब मैंने हॉस्पिटल में मरे हुए मरीज़ का भूत देखा
मैं एक नर्स हूँ और यह बात मैं आपको बता रही हूँ जब मैं हॉस्पिटल में नाइट शिफ्ट में थी। उस दिन कोई बड़ा फेस्टिवल था, रोड्स पर बहुत भीड़ थी और लोग बहुत enjoy कर रहे थे। हॉस्पिटल में भी खुशी का माहौल था लेकिन ये माहौल कुछ ही देर रहा, हमारे पास एक accidental case आया।
एक बाइक वाले को कार वाले ने टक्कर मार दी थी। कार के ब्रेक्स अचानक से lock हो गए थे जिस वजह से कार ड्राइवर कार को संभाल नहीं पाया और उसने एक बाइक वाले को हिट करते हुए एक दीवार में जा घुसा। दीवार के पास एक बूढ़ा आदमी था जो कार और दीवार के बीच में आ गया था और उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी।
बाइक वाले को भी बहुत चोटें आई थीं और वो बहुत गंभीर स्थिति में था। ड्राइवर कार छोड़कर भाग गया था। उन दोनों लोगों को हॉस्पिटल लाया गया जहाँ एक की तो मौत हो चुकी थी और दूसरे को आईसीयू में ले जाया गया। उस आदमी के परिवार को सूचित किया गया लेकिन परिवार से कोई नहीं आया, शायद वो आदमी अपनी जिंदगी में अकेला था।
त्यौहार के दिन किसी के साथ इतना गलत होना और उसके ऊपर उसके साथ कोई भी नहीं था, तो हॉस्पिटल का स्टाफ भी उस आदमी के लिए इमोशनल हो गया था। करीब एक हफ्ते वो आईसीयू में रहा लेकिन उसकी कंडीशन लगातार बिगड़ती गई। डॉक्टर ने कहा कि अब इमरजेंसी में उसका ऑपरेशन करना होगा।
लेकिन दुर्भाग्यवश ऑपरेशन के दौरान उस आदमी की मौत हो गई। हम सभी लोग काफी दुखी थे। हम कल ही आपस में उसको लेकर बहुत बातें करते थे। अब उस आदमी की मौत के कुछ दिन बाद मैं फिर से night duty पर थी। मैं अपना routine काम कर रही थी और हर रूम में जाकर पेशंट्स को चेक कर रही थी, कहीं किसी को कुछ चाहिए तो नहीं।
जब मैं एक रूम में घुसी तो वहाँ पेशेंट आराम से सो रहा था। लेकिन तभी मैंने देखा एक आदमी रूम के कोने में खड़ा था। उसने अपना मुंह दीवार की तरफ कर रखा था। वो आदमी पेशेंट गाउन ही पहने हुए था। मुझे लगा कि ये पेशेंट अपने रूम से भटक कर इस रूम में आ गया होगा, लेकिन वो बहुत ही अजीब तरीके से खड़ा था।
ना वो हिल रहा था और ना ही वो इधर-उधर देख रहा था। वो बस एक ही जगह घूरे जा रहा था। मैंने उसे आवाज लगाई लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने सोचा कि उसके पास जाकर उसकी मदद करूँ, लेकिन जैसे ही मैं आगे की तरफ बढ़ी मुझे पीछे से किसी के चिल्लाने की आवाज आई, "रुको!"
मैं एकदम से ठिठक गई। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वहां मेरी कलीग खड़ी थी। उसने मुझसे फिर कहा, "आगे मत जाओ और वापस चलो।" मैंने उससे कहा कि नहीं इस पेशेंट को मदद की जरूरत है। और ये कहते ही जैसे ही मैं मुड़ी, मेरे होश उड़ गए। मेरा गला सूख गया और शायद मेरी साँसे भी उस वक्त थम गई थी।
वो आदमी जहाँ खड़ा था, इस बार उसका मुँह दीवार की तरफ नहीं बल्कि मेरी तरफ था। और हाँ आप सही समझे, वो और कोई नहीं वही बाइक वाला था जिसकी कुछ दिनों पहले मौत हो गई थी। मेरी कलीग मुझे वहाँ से खींच कर ले गई, लेकिन मैं पूरी तरह से सुन्न हो गई थी।
मुझे अपने होशोहवास में आने में कुछ वक्त लगा। लेकिन आज भी उस दृश्य को मैं सोचती हूँ तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अभी ये कहानी लिखते वक्त भी मेरे रोंगटे खड़े हो गए हैं। मैं बस भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ उस आदमी की आत्मा को शांति मिल जाए।
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