जापान के उस हॉस्पिटल की रातें: मेरा नर्स बनने का सपना और खौफनाक हकीकत
मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा नर्स बनने का सपना मेरे जीवन की सबसे डरावनी यादों में बदल जाएगा। जब मैंने नर्सिंग का कोर्स पूरा किया था तो मेरी पहली नौकरी जापान के ओकायामा शहर के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में लगी। मुझे लगा अब ज़िंदगी बेहतर हो जाएगी, लेकिन मैं गलत थी।
अस्पताल बहुत आधुनिक था और कर्मचारी भी काफी सहयोगी थे। लेकिन यहाँ आने के एक सप्ताह बाद ही मेरी ड्यूटी नाइट शिफ्ट में लगाई गई। वहीं मेरी मुलाकात सीनियर नर्स मिस अकीरा से हुई। वो शांत स्वभाव की थीं, लेकिन उनकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी जो मुझे बेचैन कर गई।
जब मैं पहली रात की ड्यूटी के लिए तैयार हो रही थी, मिस अकीरा मेरे पास आईं और उन्होंने मुझे एक कागज़ का टुकड़ा दिया। उन्होंने कहा, "ये नाइट शिफ्ट के नियम हैं।" उस कागज़ पर कुछ बहुत ही अजीब बातें लिखी थीं, जिन्हें पढ़कर मेरी रूह कांप गई।
उसमें लिखा था: रात 11 बजे के बाद पश्चिम विंग में मत जाना। पूर्वी विंग के गलियारे में कोई मरीज दिखे तो उसकी ओर ध्यान मत देना। अगर लिफ्ट बिना बुलाए खुल जाए तो उसमें मत जाना। कहीं से भी चीखने की आवाज़ आए तो उसका पीछा मत करना।
मैंने मिस अकीरा से पूछा, "ये कैसे नियम हैं?" उन्होंने केवल इतना कहा, "अगर यहाँ ठीक से काम करना है तो इन नियमों का पालन करना होगा।" मुझे ये सब बहुत अजीब लगा, लेकिन सोचा शायद यह अस्पताल की कोई पुरानी परंपरा होगी जिसे निभाना ज़रूरी है।
वो मेरी पहली रात थी और जैसे ही रात के 11 बजे, अस्पताल में सन्नाटा छा गया। बस कुछ हल्की रोशनी और मशीनों की बीप की आवाजें सुनाई दे रही थीं। मैं घूम-घूमकर मरीज़ों का हालचाल ले रही थी, लेकिन मन के किसी कोने में वो नियम गूंजते रहे।
करीब आधी रात को जब मैं पूर्वी विंग के पास पहुँची, तो मैंने गलियारे में एक परछाई देखी। ध्यान से देखने पर वहाँ एक मरीज खड़ा था, लेकिन उसका चेहरा छुपा हुआ था। जैसे ही मैं उसकी तरफ बढ़ने लगी, मुझे वो नियम याद आया—"उनकी ओर ध्यान मत देना।"
पता नहीं क्यों मैं वहाँ से हिल नहीं पाई। मैं बस खड़ी उस मरीज को देखती रही और वो व्यक्ति धीरे-धीरे मेरे सामने ही अंधेरे में गायब हो गया। मेरी रीढ़ की हड्डी तक सिहर उठी। अगले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएँ बढ़ने लगीं और मेरा डर गहराता गया।
एक रात जब मैं पश्चिमी विंग में थी, वहाँ का माहौल बहुत ठंडा लग रहा था। मुझे लग रहा था जैसे कोई मुझे लगातार देख रहा हो। तभी अचानक किसी ने मेरा नाम पुकारा। आवाज़ इतनी धीमी थी कि लगा शायद वहम हो, लेकिन डर का बीज बोया जा चुका था।
उसी समय सामने की लिफ्ट बिना बुलाए अपने आप खुल गई। अंदर घुप अंधेरा था। मैं जल्दी से पीछे हट गई और लिफ्ट का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। इस घटना ने मुझे भीतर तक हिला दिया। मैं सोचती रही कि शायद मशीन खराब थी, लेकिन मन मानने को तैयार नहीं था।
उस रात मैं बार-बार अकीरा द्वारा दिए गए नियमों को याद करती रही। मेरी नाइट शिफ्ट अभी कई दिनों की थी और मुझे नहीं पता था कि आगे और क्या होने वाला है। अगली रात जब मैं फार्मेसी रूम में दवाइयों का स्टॉक चेक कर रही थी, कुछ असामान्य हुआ।
वहाँ का माहौल बहुत शांत था और मैं नोटबुक में कुछ लिख रही थी कि तभी मुझे लगा मेरे पीछे कोई खड़ा है। डरते हुए मुड़ी तो वहाँ कोई नहीं था। तभी धीमे कदमों की आवाज़ आई जो फार्मेसी के बाहर से आ रही थी। मैंने डरते हुए बाहर झाँका।
दूर एक आदमी दिखाई दिया, उसने सफेद मरीजों वाला गाउन पहना था लेकिन उसकी चाल बहुत अजीब थी। वो झूलता हुआ धीरे-धीरे चल रहा था। मैंने खुद को याद दिलाया—"उनकी ओर ध्यान मत देना।" वो आदमी गलियारे के अंधेरे में गायब हो गया और मैं काँपती हुई वहीं खड़ी रही।
अगले दिन मैंने अकीरा से बात की। मैंने कहा, "मुझे समझ नहीं आ रहा मैं यहाँ काम कैसे करूँ?" उन्होंने गहरी साँस ली और कहा, "यहाँ हर कोई इन घटनाओं का सामना करता है। यह अस्पताल बहुत पुराना है और यहाँ कई आत्माएँ अभी भी भटक रही हैं।"
मैंने उन्हें घूरते हुए पूछा, "आप लोग ये सब अनदेखा कैसे कर सकते हैं?" उन्होंने ठंडी आवाज़ में जवाब दिया, "अगर नौकरी करनी है तो नियम मानने होंगे। छोड़ना चाहो तो छोड़ दो।" मैंने मन में ठान लिया—मैं किसी भी हालत में नियम नहीं तोडूँगी, पर सब आसान नहीं था।
अगली रात करीब तीन बजे मुझे पश्चिम विंग से किसी के चीखने की आवाज़ आई। वो आवाज़ इतनी दर्दभरी थी कि मैं खुद को रोक नहीं पाई। मैं उस दिशा में बढ़ी। वहाँ गलियारे में एक महिला जमीन पर बैठी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे और वह रो रही थी।
मैंने पूछा, "आप ठीक हैं?" उसने धीरे से सर उठाया और जो मैंने देखा, उसे मैं कभी नहीं भूल सकती। उसके चेहरे पर न नाक थी न मुँह, बस आँखों की जगह गहरे काले गड्ढे थे। मैं चीखना चाहती थी लेकिन आवाज़ नहीं निकली और वो मेरी ओर झपट पड़ी।
मैं अपनी पूरी ताकत लगाकर वहाँ से भागी। उस घटना के बाद मैं ठीक से सो नहीं पाई। मन में सिर्फ यही ख्याल था कि मुझे ये नौकरी छोड़ देनी चाहिए। ये मेरी सहनशक्ति की आखिरी सीमा थी। मैंने अपनी चीज़ें समेटीं और अस्पताल छोड़ दिया।
आज मैं एक दूसरे अस्पताल में सीनियर नर्स के पद पर काम कर रही हूँ। जीवन सामान्य है, लेकिन उस पुराने अस्पताल की यादें अब भी मेरे दिमाग में घूमती हैं। अगर आप कभी ओकायामा के उस अस्पताल में जाएँ, तो तय कर लें कि आप नियमों का पालन ज़रूर करेंगे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें