मेरी दादी का श्राप और रहस्यमयी बुढ़िया: मेक्सिको से एक सच्ची ला लेचुजा कहानी
ये कहानी उस वक्त की है जब मैं नौ या दस साल का था। हम Mexico में Sierra Madre पहाड़ों के पास एक छोटे से कस्बे में रहते थे। एक ऐसी जगह जहाँ की सड़कें कच्ची थी, लोग अपना खाना खुद उगाते थे और हर कोई एक दूसरे के बारे में सब कुछ जानता था। ज्यादातर समय वहाँ शांति और सुकून होता था।
लेकिन हमारे मोहल्ले के पीछे वाली पहाड़ी में हमेशा से कुछ अजीब सा होता आ रहा था। उस पहाड़ी पर वो एक बूढ़ी औरत रहती थी। शायद सत्तर की, शायद उससे भी ज्यादा उम्र की, किसी को ठीक-ठीक नहीं पता था। उसका एक छोटा टुटा-फूटा घर था जो पहाड़ी के ऊपर घने पेड़ों और लताओं के नीचे छिपा हुआ था।
ज्यादातर लोग वहाँ जाने से बचते थे, कुछ सम्मान की वजह से, लेकिन बाकी डर की वजह से। लोग फुसफुसाते थे कि वो काला जादू करती थी। कुछ कहते थे कि वो मरे हुओं से बात कर सकती थी, दूसरों का कहना था कि वो लचूजा बन सकती थी, एक विशाल शापित उल्लू जो रात में शिकार करता है।
मैं उस वक्त इन बातों पर यकीन नहीं करता था, तब तक नहीं जब तक मेरी दादी के साथ वो सब नहीं हुआ। एक सुबह मेरी दादी चीखते हुए उठीं। उनके बाल सारे के सारे गायब थे, सिर्फ सर के बाल नहीं, उनकी भौंहें भी गायब थीं। बिलकुल साफ, जैसे उन्हें जला दिया गया हो, लेकिन कोई जलन का निशान या चोट नहीं थी, कोई वजह नहीं थी।
उन्होंने आईने में खुद को देखा और किचन की फर्श पर गिर पड़ीं। वो बार-बार कह रही थीं, 'वो वही होगी, पक्का वही होगी।' माँ ने उस दिन ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन मुझे याद है कि वो घर के पीछे गईं और मिट्टी में एक अंडा दफना दिया। लोग ऐसा नजर उतारने के लिए करते थे, किसी बुरी शक्ति या बुरे हमले को पकड़ने के लिए।
अगले दिन जब उन्होंने उसे खोदा तो अंडा अंदर से एकदम काला था, सड़ चुका था। जैसे उस पर श्राप डाला गया हो। तब से कस्बे में बातें और तेज हो गईं। लोग यकीन करने लगे थे कि डोना ने मेरी दादी को श्राप दिया था।
कुछ लोगों का कहना था कि वो दोनों सालों पहले दोस्त थीं और उनके बीच कुछ हुआ था। दूसरों का कहना था कि डोना को इस बात की जलन थी कि मेरी दादी सबकी पसंदीदा थीं और लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे।
फिर एक रात सब कुछ बदल गया। रात के करीब दो या तीन बजे का वक्त था, जब मैं बाहर से जोरदार धमाकों की आवाज से जागा। मैं खिड़की की ओर दौड़ा, और मेरी माँ ने मुझे पीछे खींच लिया और देखने से मना कर दिया। लेकिन मैंने फिर भी झाँक लिया।
पहाड़ी के पास वाले खेत में पाँच या छह आदमी खड़े थे। उनके हाथों में टॉर्च थी। सब अपनी राइफलें पेड़ों की ओर ताने हुए थे। और तभी मैंने उसे देखा, एक विशाल काला उल्लू पेड़ों से नीचे की ओर झपटा, इतना नीचे कि मैं अपने घर से उसके पंखों की फड़फड़ाहट सुन सकता था।
वो कोई साधारण पक्षी नहीं था। वो बहुत बड़ा था, बहुत तेज़ था, और उसकी आँखें जलते अंगारों की तरह चमक रही थीं। आदमियों ने गोली चलाना शुरू कर दिया। एक गोली, फिर दूसरी, फिर चार पाँच गोलियाँ तेजी से।
उस प्राणी ने चीख मारी, एक भयानक इंसान जैसी चीख जो पूरी घाटी में गूँज गयी। फिर वो नीचे गिरा, ज़मीन पर टकराया और झाड़ियों में लड़खड़ाता हुआ चला गया। सब लोग टॉर्च लेकर पहाड़ी की ओर दौड़े, लेकिन थोड़ी देर बाद वो खाली हाथ लौट आए। ना खून, ना पंख, उन्हें कुछ भी नहीं मिला।
लेकिन असली अजीब बात यहाँ से शुरू होती है। तीन दिन तक डोना का घर पूरी तरह अँधेरे में रहा। उसकी चिमनी से कोई धुआँ नहीं निकला। उसके घर या आसपास में उसका कोई निशान नहीं था। और फिर चौथे दिन वो आखिरकार बाहर निकली।
मैंने जो देखा उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा। वो धीरे-धीरे चल रही थी, झुकी हुई, और एक टेढ़ी-मेढ़ी लकड़ी की छड़ी पर जोर से टेक लगाए हुए थी। उसका दायां पैर, जिसे लोगों ने कहा था कि उन्होंने उस प्राणी को गोली मारी थी, बेकार होकर पीछे घिसट रहा था।
उसने कुछ बोला नहीं, किसी की ओर देखा भी नहीं। बस ऐसे लंगड़ाते हुए कस्बे के कुएं की ओर चली गई, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। उसके बाद लोग चुप हो गए। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उससे कुछ कहें।
जिस आदमी ने दावा किया था कि उसने उसे गोली मारी, वो एक महीने से भी कम समय में वहाँ से चला गया, क्योंकि उसके मवेशी एक-एक करके मरने लगे थे। मेरी दादी धीरे-धीरे ठीक हो गईं, लेकिन उनके बाल कभी पूरी तरह वापस नहीं आए।
और आज तक वो अपने तकिए के नीचे एक माला रखती हैं, अपनी सावधानी के लिए। मैं सालों से उस कस्बे में वापस नहीं गया, लेकिन कभी-कभी जब मैं पेड़ों के बीच हवा की सरसराहट सुनता हूँ, मुझे वो चीख याद आती है, चाँदनी में काले पंखों की वो झलक दिखती है, और मैं सोचता हूँ, क्या वो बुढ़िया आज भी उन्हीं पहाड़ियों में रहती है?
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