कोरोना लॉकडाउन में हाईवे पर खराब हुआ ट्रक और एक रहस्यमयी मददगार Horror Story


एक डरावनी रात: ट्रक ड्राइवर बलबीर की कहानी

एक डरावनी रात: ट्रक ड्राइवर बलबीर की कहानी

मेरा नाम बलबीर है, और मैं एक ट्रक चलाता हूँ। यह उस समय की बात है जब हमारे देश में कोरोना महामारी फैली हुई थी। लॉकडाउन अभी-अभी हटा था, और धीरे-धीरे कुछ राहत मिलने लगी थी। एक दिन, मैं अपने ट्रक में राशन का सामान पहुँचाकर घर लौट रहा था। तभी रास्ते में मेरे ट्रक में खराबी आ गई।

पिछले चौबीस घंटों से मेरा ट्रक एक हाईवे के किनारे खड़ा था। उसमें कुछ ऐसी खराबी थी जिस पर एक मैकेनिक काम कर रहा था। सड़क पर दूसरी कोई गाड़ी नहीं दिख रही थी। वह मैकेनिक पास के ही एक गाँव में रहता था। उसने सुबह से शाम तक अपनी पूरी कोशिश की, मगर ट्रक ठीक नहीं हो पाया।

अंत में, वह मुझसे बोला कि "उस्ताद, यह ट्रक तभी ठीक हो पाएगा जब बाज़ार खुलेगा, क्योंकि मेरे पास भी इस ट्रक के पार्ट्स नहीं हैं।" उसके बाद वह मैकेनिक अपने गाँव की तरफ चला गया। शाम हो चुकी थी, और सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था, क्योंकि डर के मारे कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकल रहा था।

मैं ट्रक में चढ़ा और अपनी किस्मत को कोसते हुए अपनी सीट पर सिर पकड़कर बैठ गया। मेरे फोन की बैटरी भी खत्म हो चुकी थी। एक तो ट्रक चालू नहीं हो रहा था, और ऊपर से फोन भी बंद पड़ा था, जिसकी वजह से मैं अपने घर पर भी बात नहीं कर पा रहा था। मैंने रात के खाने के लिए स्टोर में खिचड़ी चढ़ा दी, और फिर खिचड़ी खाकर मैं ड्राइविंग सीट के पीछे वाली लंबी सीट पर जाकर सो गया।

करीब आधी रात में, मुझे लोहे के औजारों की आवाज आने लगी, जिससे मेरी नींद खुल गई। ऐसा लग रहा था जैसे कोई लोहे के औजारों से मेरे ट्रक के नीचे कोई नट बोल्ट टाइट कर रहा हो। मैंने सीट के नीचे से एक लोहे की रॉड निकाली और एक टॉर्च जलाकर आवाज दी, "हाँ भाई, कौन है? तुम्हें क्या चाहिए?"

मैंने टॉर्च की रोशनी डाली, तो देखा वहाँ कोई भी नहीं था। मैंने अच्छे से ट्रक के आसपास भी देखा, मगर कोई दिखाई नहीं दिया। सड़क के किनारे एक घना जंगल था, उसमें भी मैंने टॉर्च की रोशनी डालकर अच्छे से देखा। मगर जहाँ तक उस टॉर्च की रोशनी जा रही थी, मुझे कोई नहीं दिखा।

मगर मुझे फिर से वही आवाज आने लगी, लोहे के औजारों के खनकने की आवाज। इस बार मैंने कोई आवाज नहीं की, बस दबे कदमों से ट्रक के नीचे उतरा और झुककर ट्रक के नीचे टॉर्च की रोशनी डाली, मगर इस बार भी वहाँ कोई नहीं था। मगर तभी मुझे मेरे पीछे किसी के चलने की आवाज सुनाई दी।

मैंने तुरंत पलटकर उस तरफ देखा, तो मुझे खेतों के बीच की पगडंडी पर कोई भागता हुआ सा दिखाई दिया। मैं उसे गाली देता हुआ उसके पीछे भागा। यह वही रास्ता था जिधर वह मैकेनिक गया था, जिस तरफ उसका गाँव था। खेतों के बीच भागते-भागते मैं एक ट्यूबवेल के पास पहुँचा।

मैंने चारों तरफ टॉर्च की रोशनी से देखा। चारों तरफ सिवाय खेतों के और कुछ नहीं था। आसमान साफ था, और चाँद पूरा खिला हुआ था, जिसकी चाँदनी से दूर-दूर तक थोड़ा बहुत दिखाई दे रहा था। मगर दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं था। मैंने ट्यूबवेल से पानी पिया और वापस अपने ट्रक की तरफ आने लगा।

मगर जब मैं खेतों के बीच पगडंडी में चल रहा था, तब मुझे मेरे पीछे से किसी के भारी-भारी कदमों की आवाजें आ रही थीं। मैंने तुरंत पलटकर पीछे देखा, मगर मेरे पीछे कोई नहीं था। मैं वापस अपने रास्ते चलने लगा। तभी मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा। मैंने पलटकर पीछे देखा, मगर इस बार भी मेरे पीछे कोई नहीं था।

मैं इतना तो समझ गया था कि यहाँ पर कुछ गड़बड़ है। कोई भूत या प्रेत, क्योंकि कदमों की आवाज और मेरे कंधे पर वह हाथ, वह सब इतना सच्चा था कि मुझे यकीन हो गया था कि वहाँ कोई है, मगर उसका न दिखना इसका मतलब साफ था कि वहाँ भूत है।

मैं तुरंत अपने ट्रक की तरफ भागा। मैं खेतों के बीच पगडंडी में बेतहाशा भाग रहा था। तभी मेरी नजर मेरे ट्रक के पास गई। मैंने अपने ट्रक के पास एक धुंधली परछाई को खड़े देखा। अंधेरे की वजह से मैं साफ नहीं देख पा रहा था। मेरी हिम्मत नहीं हुई उसके करीब जाने की।

मैंने टॉर्च की रोशनी उस धुंधली परछाई के ऊपर डाली, तो देखा वहाँ पर एक आदमी खड़ा था। मैंने ऊपर से नीचे तक उस पर टॉर्च की रोशनी डाली और उसे अच्छे से देखा। वह मुझे किसी नॉर्मल इंसान की तरह दिखाई दे रहा था। मैं उसके करीब गया, तब वह आदमी मुझसे बोला, "आप ही उस्ताद बलबीर हैं? यहाँ से कुछ दूर पीछे मेरे ट्रक का टायर पंक्चर हो गया है। टायर बदलने के लिए क्या मुझे आपका जैक मिलेगा? मैं टायर बदलकर वापस दे जाऊँगा।"

उसके माथे पर चोट का निशान था, जिसके टाँके साफ दिखाई दे रहे थे। चेहरे पर हल्की काली-सफेद दाढ़ी थी। मैं अपने ट्रक में चढ़ा और सीट के नीचे से जैक निकालकर उस आदमी को दे दिया। उसके बाद वह आदमी वहाँ से चला गया।

मैं ट्रक में चढ़ा और मैंने भगवान के आगे माथा टेका, और उसके बाद मैं ड्राइविंग सीट के पीछे वाली लंबी सीट में जाकर लेट गया। काफी देर तक मुझे नींद नहीं आई, फिर न जाने कब लेटे-लेटे मेरी आँख लग गई।

सुबह किसी ने मेरे ट्रक के गेट पर जोर से हाथ मारा। मैं हड़बड़ा कर खड़ा हुआ और मैंने खिड़की से बाहर देखा। बाहर वही मैकेनिक था जिसने पिछले दिन मेरे ट्रक को ठीक करने की कोशिश की थी। वह मैकेनिक मुझसे बोला, "उस्ताद, बाहर आइए। मैं आपके ट्रक का पार्ट ले आया हूँ। पुराना पड़ा था मेरे पास, इसकी मदद से आपका ट्रक शहर तक पहुँच जाएगा।"

फिर वह मेरी ट्रक में चढ़ा और ट्रक में से कुछ औजार और जैक निकाल लाया। जब मैंने उसके हाथ में जैक देखा, तो मैंने हैरानी से उससे कहा, "यह जैक, यह तुम्हारे पास कहाँ से आया?"

वह बोला, "उस्ताद, यह जैक तो आपका ही है, यहीं आपकी सीट के नीचे रखा हुआ था। क्यों, क्या हुआ?" मैंने कहा, "कल रात एक आदमी आया था, कुछ नाम था उसका... रमेश।"

वह बोला, "उसका ट्रक पीछे सड़क में कहीं पर पंक्चर हो गया था, तो... माँग कर लेकर गया था।" वह मैकेनिक हैरानी से बोला, "क्या नाम बताया आपने उसका?" मैंने कहा, "रमेश।" यह नाम सुनकर उसके चेहरे पर हैरानी के भाव छा गए।

वह बोला, "क्या उसके माथे में चोट का निशान था? आँखें भयानक थीं? वह अधेड़ उम्र का गंजा आदमी था?" मैंने हाँ कहा। वह मैकेनिक बोला, "लॉकडाउन से कुछ दिन पहले इसी सड़क पर कुछ दूरी पर एक ट्रक पंक्चर होकर सड़क के किनारे एक पेड़ से जा टकराया था और पलट गया था। तब रमेश नाम का क्लीनर उस ट्रक के नीचे दबकर मर गया था। उस्ताद, जैसा हुलिया आप बता रहे हो, वह उसी रमेश का था। मुझे पूरा यकीन है कि आपको कल रमेश का भूत मिला था।"

यह बात सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मैंने उस मैकेनिक से पूछा, "अभी कल रात मुझे ट्रक के नीचे किसी के होने का भी एहसास हुआ था। मैंने शोर मचाया, तो वह उसी तरह भागा जिस तरफ तुम्हारा गाँव पड़ता है। मैंने उसका पीछा किया, तो मैं एक ट्यूबवेल के पास पहुँचा। जब मैं उस ट्यूबवेल से पानी पीकर लौट रहा था, तो मुझे मेरे पीछे किसी के कदमों की आवाज आई। कंधे पर हाथ रखा, लेकिन जब मैंने पलटकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था, और उसके बाद मुझे रमेश मिला।"

तब वह मैकेनिक बोला, "और उस्ताद, यह इलाका ठीक नहीं है। यहाँ पर भूत-प्रेत और कई आत्माएँ घूमती हैं। आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन भूत है।" और इतना कहकर वह मैकेनिक मेरे ट्रक के नीचे घुसा और ट्रक को ठीक करने में जुट गया।

कुछ देर बाद वह बाहर आया, और मैंने उसे पाँच सौ का एक नोट थमा दिया। वह आखिरी पाँच सौ का नोट था जो मेरे पास था। उसके अलावा मेरे पास सिर्फ सौ-सौ के दो नोट बचे हुए थे, और कोई पैसा मेरे पास नहीं था। वह मैकेनिक ऐसे लेटा हुआ मुझसे बोला, "उस्ताद, ट्रक को जरा धीरे-धीरे चलाना।" इतना कहकर वह फिर उसी तरफ चला गया जिस तरफ वह कल रात गया था। अजीब बात थी, वह उस तरफ क्यों जा रहा था जबकि उधर तो दूर-दूर तक कोई गाँव था ही नहीं?

मैं अपने ट्रक में चढ़ा और ट्रक स्टार्ट करके शहर की ओर बढ़ गया। काफी दूर पहुँचकर मुझे एक गाँव मिला, और वहाँ एक ढाबे में मैंने अपना ट्रक रोका और दाल-रोटी ऑर्डर की। खाना खाकर जब मैं पैसे चुकाने के लिए काउंटर पर गया, तो मैंने पैसे चुकाने के लिए अपनी जेब में हाथ डाला, और पैसे बाहर निकाले, तब मेरे हाथ में सात सौ रुपए थे। सौ-सौ के दो नोट के अलावा पाँच सौ का नोट भी था। वही आखिरी नोट जो मैंने उस मैकेनिक को दिया था। फिर यह नोट वापस मेरी जेब में कैसे आ गया, मुझे कुछ समझ नहीं आया। तब मुझे उस मैकेनिक की बात याद आई, "उस्ताद, यह इलाका ठीक नहीं है। यहाँ पर भूत-प्रेत और कई आत्माएँ घूमती हैं। आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन भूत है और कौन इंसान।"

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