उन्नीस सौ नब्बे की कर्नाटक की चुड़ैल और उत्तर प्रदेश का रहस्यमयी मनोजवा Horror Story
उन्नीस सौ नब्बे की कर्नाटक की चुड़ैल और उत्तर प्रदेश का रहस्यमयी मनोजवा: भारत के डरावने शहरी मिथक
उन्नीस सौ नब्बे के दशक की बात है, कर्नाटक के देहाती इलाकों में एक अजीब दहशत फैली हुई थी। लोग एक ऐसी चुड़ैल के डर से सहमे हुए थे, जिसके बारे में कहा जाता था कि वह रात के अंधेरे में गांव में भटकती है। उसकी खौफनाक हरकत यह थी कि रास्ते में जो भी उसे दिखाई देता, वह उसे पकड़कर किसी सुनसान जगह ले जाती और बेरहमी से उसकी जान ले लेती।
लेकिन अगर उस रात उसे कोई शिकार नहीं मिलता, तो वह लोगों के घरों पर दस्तक देती। सबसे डरावनी बात यह थी कि जब वह बुलाती थी, तो उसकी आवाज घर के किसी सदस्य जैसी होती थी। उसमें इतनी शक्ति थी कि वह किसी की भी आवाज निकाल सकती थी। इस धोखे में फंसकर अगर कोई दरवाजा खोल देता, तो वह पल भर में उसे अपना शिकार बना लेती।
एक वक्त ऐसा आया जब गांव में इस चुड़ैल का आतंक इतना बढ़ गया कि गांव के बड़े-बुजुर्गों ने मिलकर पंचायत बुलाई। उस बैठक में यह फैसला लिया गया कि शाम को अंधेरा होने के बाद गांव का कोई भी व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकलेगा। इसके साथ ही, एक और तरकीब अपनाई गई। सभी लोगों ने अपने घरों के बाहर एक शब्द लिख दिया - "कल आना"।
अब स्वाभाविक सी बात थी, जब भी वह चुड़ैल रात में आती और किसी घर के दरवाजे पर जाती, तो उसे यह लिखा हुआ दिखाई देता। ऐसा कहा जाता है कि वह उसे पढ़कर चली जाती थी, कल आने के लिए। और जब वह वापस आती, तो फिर से उसे वही लिखा मिलता। ऐसा ही कई दिन चलता रहा और लोग उस चुड़ैल से बचे रहे।
यह जो छोटी सी कहानी मैंने आपको सुनाई, यह कर्नाटक की है और कई लोग इस कहानी को "नाले बा" के नाम से जानते हैं। यह कर्नाटक के बहुत पुराने शहरी मिथकों में से एक है। लेकिन बहुत से लोगों को इस कहानी के बारे में तब पता चला जब दो हजार अठारह में बॉलीवुड में एक फिल्म आई, "स्त्री" के नाम से।
मुझे अंदाजा है कि आप लोगों को भी इस कहानी के बारे में थोड़ा-थोड़ा तो पता चल ही गया होगा, खासकर अगर आपने वह फिल्म देखी हो। पर क्या कभी आपने यह सोचा है कि यह फिल्म बनने के बाद ही हमें इस शहरी मिथक के बारे में पता चला? भारत में इतने सारे राज्य हैं जिनके अपने-अपने कई शहरी मिथक हैं, जिन पर तो कोई फिल्म भी नहीं बनी है।
तो आज कुछ ऐसे ही शहरी मिथकों की कहानियां मैंने छांटी हैं जो काफी डरावनी हैं। इनके बारे में किसी-किसी ने तो सुना भी होगा, पर काफी कम लोगों को इनके बारे में पता है।
बंगाल की डायन
अब बात करते हैं एक ऐसे ही शहरी मिथक की। इस मिथक के बारे में यह तो नहीं पता कि यह कब शुरू हुआ, लेकिन जगह थी पश्चिम बंगाल। वहां के एक गांव में कुछ दोस्त अपने रिश्तेदार के घर गए हुए थे। रात का खाना खाने के बाद वे सब घूमने निकले। कच्चे-पक्के रास्तों से होते हुए वे एक ऐसी जगह पर पहुंचे जहां प्रॉपर लाइट भी नहीं थी।
तभी उन लोगों ने नोटिस किया कि आगे कुछ कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही है। तो वे लोग वहीं से चौकन्ने हो गए कि कहीं आगे कोई चोर तो नहीं या कुछ अजीब तो नहीं है। जब वे चलते-चलते आगे पहुंचे, जहां वे कुत्ते सब एक साथ जमा होकर भौंक रहे थे, तो उन्होंने देखा कि रास्ते के बीचों-बीच एक बहुत ही अजीब सी चीज चलती हुई जा रही है।
उनमें से कोई भी समझ नहीं पाया कि आखिर वह चीज क्या थी। वहां थोड़ी-थोड़ी रोशनी थी और एक दोस्त ने अपना फोन निकालकर उसे रिकॉर्ड कर लिया। वह कोई इंसान की तरह दिखाई देने वाला क्रिएचर लग रहा था और वह अपने चार पैरों पर बड़े आराम से चलता हुआ जा रहा था, और कुत्ते वहां लगातार भौंके जा रहे थे। मतलब वह कोई एडिटेड वीडियो नहीं था, देखकर ही पता चल रहा था।
मैंने जब इंटरनेट पर इसके बारे में थोड़ी और रिसर्च की तो पता चला कि इस वीडियो में जो क्रिएचर था, वह थी "बंगाल डायन"। पश्चिम बंगाल में कई सारे गांवों में बंगाल डायन की कहानियां काफी मशहूर हैं और वहां के लोग इसमें विश्वास भी रखते हैं और साथ ही साथ काफी डरे-डरे भी रहते हैं।
माना जाता है कि यह डायन बहुत सारे जादू टोना में इन्वॉल्व होती है और इनके पास शक्तियां भी बहुत होती हैं, जिसका इस्तेमाल वह गलत कामों में करती है। ज्यादातर यह डायन रात को बाहर निकलती है। दिन के टाइम तो आपको इन्हें पहचानना भी मुश्किल है क्योंकि यह एक आम इंसान की तरह लोगों के बीच ही रहती हैं। और आप सोचिए कि एक डायन आपके बीच बड़े नॉर्मल तरीके से रह रही है, यह कितना खतरनाक हो सकता है। सोच के भी रूह कांप जाती है। पर रात होते ही इनका रूप बदलने लगता है।
कई लोगों का कहना है कि ऐसा इनसे कोई करवाता है, जिस वजह से इनका ऐसा हाल हो जाता है और फिर यह पूरी रात घूमती हैं अपने शिकार की तलाश में। माना जाता है कि रात को अकेले में अगर आप गलती से उनके सामने आ गए और उनकी आंखों में देख लिया, तो वह तुम्हें अपने वश में करके तुम्हारा खून चूस लेती है, जिस वजह से उस इंसान की मौत वहीं पर हो जाती है।
मैं तो उन दोस्तों का सोच रहा था जब यह वीडियो उन्होंने रिकॉर्ड किया तो वे काफी दूर थे, जिस वजह से बच गए। शुक्र है ज्यादा पास नहीं गए, उन्हें देखने की कोशिश नहीं की। पश्चिम बंगाल के यह शहरी मिथक इतने खतरनाक हैं तो जाहिर सी बात है वहां के लोगों को इसका डर भी काफी लगा रहता होगा। आप एक बार मुझे भी बताना क्या आपने कभी इस शहरी मिथक की कहानी सुनी थी?
उत्तर प्रदेश का रहस्यमयी मनोजवा
तो चलिए अब बात करते हैं दूसरे शहरी मिथक की। अगस्त दो हजार दो, जगह उत्तर प्रदेश। गांवों में ज्यादातर अपनी छतों पर सोना पसंद करते हैं क्योंकि एक तो वहां लाइट ज्यादा जाती है और दूसरा खेत खलिहान आसपास होने की वजह से छत पर हवा भी ठंडी लगती है। इस दौरान यूपी के कई जिलों और गांवों में, यहां तक कि शहरी इलाकों में भी लोगों के बीच एक डर बैठ गया था, अपने ही घरों की छतों पर सोने में। क्योंकि उस वक्त एक बहुत ही खूंखार और भयानक से क्रिएचर की कहानी फैलने लग गई थी।
कहा जाता था कि वह उस वक्त उन शहरों और गांवों में भटकता रहता था। अगर लोगों की मानें तो यह क्रिएचर उड़ते-उड़ते एक जगह से दूसरी जगह जाता था और घरों की छतों पर भटकता रहता और उस वक्त जो भी लोग छत पर सो रहे होते थे, उन पर हमला कर देता, उनके चेहरे और गर्दन को नोच लेता। लोगों ने बताया है कि उस क्रिएचर ने कई गहरी चोटें पहुंचाई हैं।
ऐसे-ऐसे हादसों के बाद इस अनोखी और विचित्र चीज का नाम "मनोजवा" रख दिया गया था। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, वह लोगों के मुंह को नोच लिया करता था, लोगों की आंखें निकाल के उन्हें अंधा कर मारता था और ज्यादा खून बह जाने की वजह से उन्हें वहीं तड़पता छोड़ दूसरी जगह उड़ जाता था।
मनोजवा के हमले वहां दिन पर दिन बढ़ते जा रहे थे। अस्पतालों में हर दिन कई केस आते थे जिसमें उनका मुंह किसी ने बड़ी बुरी तरह से नोचा हुआ होता था। लोगों ने पुलिस स्टेशन में जाकर कंप्लेंट करनी शुरू कर दी और स्थानीय पुलिस इस बात को लेकर काफी सीरियस भी थी। खबरें अखबारों में आने लगी थीं, न्यूज चैनल्स में आने लगी थीं। पुलिस वालों ने भी लोगों को अलर्ट कर दिया था। मनोजवा का कहर पूरे यूपी में फैल चुका था।
वैसे तो यह साफ नहीं है कि वह दिखता कैसा था, पर फिर भी कुछ लोग जिन्होंने उसे देखा था, जो उसके हमले में बच गए थे, उनके हिसाब से वह काफी लंबा सा था और उसके हाथ भी काफी लंबे-लंबे थे। हाथों की उंगलियां और नाखून जरूरत से ज्यादा बड़े थे। दिखने में यह बहुत ही डरावना था। कुछ लोग इसे बड़े से मच्छर की तरह बोलते थे तो कुछ लोग इसे एक एलियन की तरह बोलते थे। साथ ही साथ लोग यह भी मानने लगे कि यह कोई राक्षस है जो उड़ता हुआ आता है और लोगों पर हमला कर देता है।
आए दिन ऐसे केस होते देख मामले को गंभीरता से लिया गया और उस वक्त यूपी गवर्नमेंट ने कुछ एक्सपर्ट्स की मदद ली। आईआईटी कानपुर से कुछ साइंटिस्ट की टीम वहां आई जिन्हें कहा गया कि रिसर्च करें इस मनोजवा पर और पता करें कि आखिर यह क्या चीज है और ऐसा क्यों कर रहा है, इसे क्या चाहिए।
गांव और शहरों में भी गवर्नमेंट ने और लोगों ने भी प्रिकॉशन बढ़ा दिए थे। लोग अपने पास हथियार रखते थे, जैसे कि लकड़ी का डंडा, लोहे की रॉड और ज्यादातर चार-पांच के झुंड में लोग रहने लगे थे। दिन और रात में दो शिफ्ट बट गई थी। पुलिस वाले भी अपना काम कर रहे थे, उन्होंने भी पेट्रोलिंग बढ़ा दी थी। और यह सब करने के बाद मनोजवा के हमलों में कमी आने लगी।
अचानक से एक तरफ मनोजवा पर काफी रिसर्च चल रही थी और दूसरी तरफ जब हमले कम हुए तो ज्यादा कुछ पता नहीं चल पाया इसके बारे में और देखते ही देखते मनोजवा के हमले बिल्कुल खत्म हो चुके थे। तब इस बात ने लोगों को काफी ज्यादा सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर क्या रीजन था कि मनोजवा के हमले एकदम से बंद हो गए।
आईआईटी कानपुर से जो साइंटिस्ट की टीम आई थी, उन्होंने जैसे-तैसे अपनी रिसर्च पूरी की। तब उन्होंने बताया कि शायद मनोजवा लोगों के मन का डर था। और फिर गवर्नमेंट ने भी इस कहानी को ज्यादा तूल ना देते हुए इसे बाकी केसेस की तरह कहीं फाइल में दबा दिया गया। पर फिर भी बहुत से लोग ऐसे थे जो आईआईटी कानपुर के साइंटिस्टों की इन बनाई कहानियों को नहीं मान रहे थे। ऐसे लोगों का साफ कहना था कि वह कोई हमारे दिमाग का या मन का डर नहीं था, वह सच में था या शायद है। उनके मन में अभी भी यह डाउट है कि शायद मनोजवा कहीं चला गया है और वह दोबारा आएगा, पर कब आएगा, कैसे आएगा, कोई नहीं जानता।
मैंने भी जब मनोजवा की कहानी के बारे में पढ़ा तो लोगों ने अपने साथ हुए हादसों के बारे में जिक्र किया हुआ था जो एक बार को आपको दुविधा में डाल सकते हैं कि क्या सच में मनोजवा नाम का कोई क्रिएचर कभी था, आगे भी है? आपका क्या कहना है इस बारे में?
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