रियल घोस्ट स्टोरी इन हिंदी: कानपुर के विक्रम ने जिन्न और हॉन्टेड नाइट्स के साथ अपने भयानक अलौकिक अनुभव को साझा किया Horror Story

Vikram की कहानी

Vikram की भूतिया कहानी

दोस्तों, मेरा नाम विक्रम है और मैं कानपुर में रहता हूँ। जो भूतिया घटना मैं आपको बताने जा रहा हूँ, वो मेरे साथ आठ से नौ साल पहले घटी थी। दरअसल, पहले मैं बिलकुल नास्तिक था। ना मैं भगवान को मानता था, ना शैतान को। भूत, प्रेत, आत्मा वगैरह सब मुझे अंधविश्वास लगता था। मैं बहुत गुस्सैल स्वभाव का था, छोटी-छोटी बातों पर किसी से भी झगड़ा कर लेता था। मैं अपने आप को बहुत बड़ा तुर्रम खान समझता था और इसी घमंड में भूत-प्रेतों को उल्टा-सीधा बोल दिया करता था।

पहले मेरे घर के बाहर एक चबूतरा था, जहाँ मैं और मेरे तीन-चार दोस्त बैठकर खूब बातें करते थे। बहुत पहले मेरी नानी ने मुझे एक जिन्न की कहानी सुनाई थी। वही कहानी मैं अपने दोस्तों को सुनाता और फिर जिन्नों और भूतों को उल्टा-सीधा बोलता। मेरे कई दोस्तों ने मुझे मना किया कि इन चीजों को बुरा नहीं बोलना चाहिए, नहीं तो कुछ बुरा हो सकता है। लेकिन मैं कहता था कि ये सब अंधविश्वास है, ऐसा कुछ नहीं होता।

मेरा रूटीन ऐसे ही चलता रहा। मैं रोज अपने दोस्तों के साथ बैठकर भूतों और जिन्नों को गालियाँ देता था। तभी एक बार की बात है, मैं दोपहर के वक्त अपने घर में आराम से लेटा हुआ था। मेरा बड़ा भाई बगल में टीवी देख रहा था। मुझे याद है, मैं आधी नींद में था और आधा जाग रहा था। तभी मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने अपना हाथ बढ़ाकर कहा, "विक्रम, अपना हाथ लाओ जरा।" मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, और जैसे ही मैंने ऐसा किया, मेरे हाथ-पैर अकड़ गए। मेरे कानों में बहुत तेज रोने और चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे कान के परदे फट जाएँगे। कुछ सेकंड तक वो भयानक आवाजें गूंजती रहीं, फिर अचानक बंद हो गईं और मेरे हाथ-पैर भी ठीक हो गए।

मैं उठकर बैठ गया और सोचने लगा कि ये सब क्या था? मैंने अपने भाई से पूछा, "क्या तुमने वो आवाजें सुनी?" उसने कहा, "कौन सी आवाज? पगला गए हो क्या?" फिर मैं भागकर अपनी मम्मी के पास गया और सारी बात बताई। मेरी मम्मी डर गईं और उसी शाम मुझे एक आंटी जी के पास ले गईं, जो हमारे घर के पास रहती थीं। वो आंटी जी मुस्लिम थीं और ताबीज वगैरह बनाती थीं। मुझे इन बातों पर विश्वास नहीं था, लेकिन मम्मी ने जबरदस्ती मुझे वहाँ ले जाया।

मम्मी ने आंटी जी को सारी बात बताई। आंटी जी ने एक काला धागा मेरे हाथ पर नापा और कहा कि मुझे जिन्न ने पकड़ा है। मैं हँसने लगा और बोला, "ये सब अंधविश्वास है।" मम्मी मुझ पर गुस्सा हो गईं। आंटी जी ने कहा, "आज की रात किसी तरह काट लो, फिर कल तुम खुद मुझसे ताबीज माँगने आओगे।" मैंने कहा, "ऐसा कुछ नहीं होगा।" फिर हम घर चले गए।

उसी रात, जब मैं खाना खाकर सोने गया, मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे कान में फूँक मार रहा हो। वो हवा मेरे कान के अंदर तक घुस रही थी। मैं तुरंत उठकर बैठ गया और सोचने लगा कि ये क्या था? अब मैं थोड़ा डरने लगा था। मैंने फिर से सोने की कोशिश की, लेकिन फिर वही हुआ। मैंने पहली बार भगवान को याद किया और किसी तरह सो गया। रात के लगभग दो बजे अचानक मेरी आँख खुली। मैंने महसूस किया कि मेरी नींद टूट चुकी थी, लेकिन मैं हिल-डुल नहीं पा रहा था। तभी मेरी नजर कमरे के एक कोने में खड़े एक आदमी पर पड़ी।

मैंने सोचा, मैंने तो कमरे की कुंडी लगाई थी, फिर ये आदमी अंदर कैसे आया? वो कौन था और मुझसे क्या चाहता था? मैं बहुत डर गया। फिर वो आदमी कोने से बाहर आया। जीरो वाट के बल्ब की रोशनी में मैं उसे साफ देख सकता था। वो एक लंबा-चौड़ा आदमी था, जिसने सफेद कुर्ता-पजामा पहना था। उसके दाँत बहुत बड़े थे और चेहरे व हाथों पर बाल थे। वो तेजी से मेरी तरफ आया और अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास ले आया। उसका चेहरा बहुत भयानक था। डर के मारे मेरे मुँह से चीख निकल गई।

मेरी चीख सुनकर मेरे घरवाले दरवाजा पीटने लगे। तब तक वो भयानक आदमी गायब हो चुका था। मेरे हाथ-पैर भी चलने लगे। मैंने जल्दी से दरवाजा खोला और सारी बात बताई। उस रात मेरा भाई मेरे साथ सोया। अगले दिन मैं मम्मी को लेकर आंटी जी के पास गया और ताबीज माँगा। आंटी जी हँसने लगीं और बोलीं, "ताबीज का क्या करोगे? ये सब तो अंधविश्वास है ना?" फिर मैंने उन्हें सारी बात बताई। आंटी जी ने बताया कि वो आदमी नहीं, एक जिन्न था। उन्होंने मुझे एक कच्चा ताबीज दिया और कहा कि इसका ध्यान रखना, नहीं तो इसका असर खत्म हो जाएगा।

ताबीज पहनने के बाद भी मेरी परेशानियाँ पूरी तरह खत्म नहीं हुईं। मुझे भयानक सपने आते थे। कभी-कभी मेरे हाथ-पैर अकड़ जाते थे। अँधेरे में अजीब-अजीब चीजें दिखती थीं। एक बार सोते वक्त मुझे लगा कि मैं हवा में उड़ रहा हूँ और खुद को देख रहा हूँ। ऐसी कई डरावनी घटनाएँ मेरे साथ हुईं। तीन साल तक दुआ और ताबीज करवाने के बाद मैं ठीक हुआ। अब मैं इन शक्तियों के बारे में कुछ भी उल्टा-सीधा नहीं बोलता, क्योंकि इनसे उलझना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।

दोस्तों, आज भी मुझे कभी-कभार अजीब और डरावने अनुभव होते हैं, लेकिन अब मेरी स्थिति पहले से बहुत बेहतर है। यही थी मेरी कहानी।

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